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________________ भरतेश वैभव २१३ raat से प्रयत्न किया कि किसी तरह इसका क्रोध शांत हो जाय । स्वामिन्! आप क्रोधित नहीं होइएगा । आपके लिए वह क्या बड़ी बात है। हम सब उसकी व्यवस्था करेंगे। आप शांतचित्तसे विराजे रहियेगा । दरबारको बर्खास्त करने की आज्ञा दीजियेगा । तदनन्तर एकांतमें इस संबंध में विचार करें। इतनेमें दरवारके इतर सब लोग चले गये । कुछ मुख्य-मुख्य लोग बैठकर विचार करने लगे एवं कहने लगे कि राजन ! तुम धीर हो ! प्रौढ़ हो ! गंभीर हो! तुम्हारी बराबरी करनेवाले लोकसें कौन हैं? ऐसी अवस्थामें तुम्हारे विशाल भाग्यके अनुसार ही तुमको चलना चाहिए । क्षुद्रलोगोंके समान चलना उचित नहीं है। तुम महलमें रहो । क्रोधको छोड़कर हमारी बातको सुनो। हमारे कार्यको देखते जाओ। लोक सब तुम्हारी प्रशंसा करें, उस प्रकार हम कर लेंगे। इस प्रकारकी बात सुनकर मागधामरने मंदहासकर कहा कि अच्छा ! आप लोग क्या कहना चाहते हैं कहिये तो सही । अब उन मंत्रिमित्रोंने समझ लिया कि इसका मन कुछ शांत हुआ है । अब बोलनेमें कोई हर्जकी बात नहीं। आगे कहने लगे कि स्वामिन् ! भरतचक्रेश्वर सामान्य नहीं हैं, वह देवाधिदेव भगवंतका पुत्र है। उसकी महत्ताको तुम सरीखे ही जान सकते हैं । पागल व्यंतर किस प्रकार जान सकते हैं ? मरतेश्वर अद्भुत संपत्ति के स्वामी है। उसको किमीका भी किचित् भय नही है और तद्भवमोक्षगामी है। उसकी त्रिभूर्तिको देखनेपर तुम्हें प्रसन्नता हुए बिना नहीं रह सकती । भरत पट्डको पालन करनेके पुण्यको प्राप्तकर उसका जन्म हुआ है। फिर उस भाग्यको कौन छीन सकते हैं ? तुम विवेकी हो। इस बातका विचार करो ! वह इतना वीर है कि विजयार्श्व पर्वतके वज्रकपाटको मिट्टीके घड़ेके समान क्षणमात्रमें फोड़ डालेगा । वह भरत सामान्य नहीं बड़े-बड़े पर्वतों को उखाड़कर समुद्र में पुल बाँधकर समुद्रको पार करेगा। देखो ! वह कितना बुद्धिमान् है । वाणका प्रयोग किया कि सीधा आकर वह उम खंभे में लगा है। जैसाकि उसके लिए यह कोई अनुभूत ही स्थान हो । उसकी बुद्धिमत्ताके लिए इससे अधिक ओर साक्षीकी क्या जरूरत है । हाथ कंगनको आरसी क्या ? समुद्र में ही खड़े होकर उसने बाणको आज्ञा दी कि खंभे में जाकर लगो तो वह बाण खंभे पर आकर लगा। यदि किसी शत्रुके हृदयको
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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