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भरतेश वैभव ऊर्वलोक, मध्यलोक व पाताललोक सभी कंपायमान हुए। विशेष क्या ? मागधामरके नगर में समुद्रके पानीने उमड़कर लोगोंको भय उत्पन्न किया। वह नगर कंपायमान हुआ। इस प्रकार वह बाण अपने वेगसे जाकर मागधामर जिस दरबारमें विराजमान था वहींपर एक खंभमें लगा । उसका शब्द उस समय अत्यन्त भयंकर था।।
एकदम दरबारके सब मनुष्य भयभीत हो गये, जैसे किसी शेरको देखनेपर सामान्य प्राणियोंकी झुण्ड भयभीत होती है। परन्तु मागधामर अत्यन्त गम्भीर है । वह अपने सिंहासनपर ही बैठकर विचार करने लगा कि यह किसकी करतत है ? सब लोगोंको उसने समझाया कि आप लोग घबरायें नहीं और अपने पासके एक सेवकको कहा कि उस बाणके साथ जो चिट्ठी लगी हुई है उसे इधर ले आओ। उसी समय एक सेवकने डरते-डरते उस पत्रको लाकर दिया । उसे पासमें खड़े हुए पत्रवाचकको पड़नेकी आज्ञा हुई। उसे पढ़ना प्रारम्भ किया।
श्रीमन्महाराज, आदिनाथ तीर्थङ्करके प्रथमपुत्र, गुरुहंसनाथभावक, उन्मत्तराजगिरिवज्रदंड, प्रचण्डदुर्मुख राजनाशक, अरिराजमेघझंझानिल, कर्मकोलाहल, मृत्युकोलाहल, चालक, प्रजाता. भरतचक्रेश्वरकी ओरसे सेवक मागधामरको निरूप दिया जाता है कि तुम सीधी तरहसे आकर कलतक हमारी सेवामें उपस्थित होना। यह . हमारी ओरसे राजाज्ञा है ।
इस पत्रको सुनते ही मागधामर क्रोधसे अत्यन्त लाल हो गया। एकदम दाँतोंको पीसते हुए कहने लगा कि उस पत्रको फाड़ो, जलायो। कहाँका यह भरत, गिरत, मैं नहीं जानता हूँ। हमारे समुद्र में यह आया कैसे ? कहाँ है अपनी सेना, बुलाओ ! मैं अभी इसे मजा चखाऊँगा । देखो तो सही ! पत्रमें क्या लिखता है ? मैं क्या इसका सेवक हूँ। मुझे आज्ञा देने आया है। समुद्र में रहनेवाले कैसे होते हैं सो इसे अभी पता नहीं। सो बताना होगा कि वे इतने भोले नहीं कि इसके झांसे में आ जायें । बह आखरको भूचर हैं, हम व्यंतर हैं। हमारे सामने वह कहीं तक अभिमान बतला सकता है ? हमारे सामने यह क्या चल सकता है ? भूतनाथोंकी वीरता अभी उसे मालम नहीं है। रहने दो ! मैं क्या उसके वश हो सकता हूँ? कभी नहीं। सेनापति ! बुलाओ! हमारे बीर कहाँ हैं ? उस भरतको जरा गरत करेंगे। __ मागधामरका क्रोध बढ़ ही रहा था। उसके पास ही मंत्री, सेनापति आदि परिवार भी उपस्थित हैं। उन लोगोंने बहुतसे नीतिपूर्ण