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________________ | भरतेश वैभव २०७ आजतक इस प्रकारका अपराध हम लोगोंसे नहीं हुआ था । इसलिए क्षमा करें। प्राणनाथ ! आपके दर्शन करने मात्रसे हम लोगोंकी थकाबट दूर हो गई है। इसलिए आप चिंता न करें। अब आगेका कार्य करें । भरतेशने कहा तब तो ठीक है। अभी हम लोग स्नान देवार्चन वगैरह करके बादमें भोजनसे निवृत्त होकर दुपहरको समुद्रकी शोभा देखें । तब वहाँसे उठकर सभी ऊपरके महलमें चले गये । मय नामक व्यंतरने क्षणभरमें भरतेश्वर व उनकी रानियोंके लिए लाखों स्नान घरोंका निर्माण कर रखा था । गृहपतिरत्नकी प्रेरणासे वहाँपर उत्तम जलका भी निर्माण हो गया। एकएक घर एक एक रानीने प्रवेशकर स्नान किया । भरतेश्वरने भी उनके लिये निर्मित स्वतंत्र स्नानगृहमें प्रवेश कर स्नान किया । देवोंके द्वारा निर्मित उन स्नानघरोंमें किसी भी प्रकारकी अड़चन नहीं है। आग लगाओ, लकड़ी लामो, उसे बुलाओ, इसे बुलाओ इत्यादि किसी भी प्रकारकी झंझट वहाँ नहीं है। सभी गृहपतिरत्नकी व्यवस्थासे अरभरमें हो जाते हैं । स्नान करनेके बाद धारण करने के लिये उत्तमोत्तम वस्त्रोंकी स्मरण करने मात्रसे पद्मनिधिनामक रत्न दे देता है । उसकी सहायतासे सब लोगोंने दिव्यवस्त्रोंको धारण किया । इसी प्रकार इच्छित आभूषणोंको पिंगलनिधिनामक रत्न दे देता है । उसके बलसे इच्छित आभूषणों को धारण किया अर्थात् सब लोग स्नान कर वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हुए। देवतंत्रसेही वस्त्राभूषणोंको धारण कर श्री भरतेश्वर देवालयको सपरिवार चले गये । वहाँपर उन्होंने बहुत भक्ति से पूजा की । उससे निवृत्त होकर अपनी रानियों को साथ लेकर दिव्य अन्नपानको ग्रहण किया । बादमें तांबूल व सुगंध द्रव्यों को लेकर कुछ देर तक अपने श्रमपरिहार के लिये सुखनिद्रा की । मिद्वादेवीने अपनी कोमल गोदमें सबको स्थान दिया । मध्याह्न तीसरे प्रहरमें भरतेश्वर अपनी स्त्रियोंके साथ समुद्रकी शोभा देखनेके लिये ऊपरकी महलपर चढ़ गये । भरतेश्वरकी स्त्रियोंने इससे पहले समुद्रको कभी नहीं देखा था । बहुत उत्सुकताके साथ देखने लगीं और भरतेश्वर भी बहुत समझाकर उन्हें दिखा रहे थे । स्त्रियोंने नाकपर उँगली दबाकर समुद्रकी शोभा देखी। समुद्रका अन्त उनकी दृष्टिसे भी परे है। उसमें अगाध जल है । अनन्त तरंग एकके बाद एक आ रहे हैं । एक तरंग आ रहा है । वह नष्ट होता है, इस
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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