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________________ २०६ भरतेश वैभव अन्दर माले समा बुद्धिसामनसे कह कि मंली! अभी नम भी जाकर विश्रांति लो! आगेका विचार कल करेंगे। इस प्रकार कहते हुए सम्राट अंदर गये व वहाँ नवभद्रशाला मण्डपमें जाकर एक सिंहासनपर विराजमान हुए । सबसे पहले अर्ककीर्तिकुमारको बुलाकर उसके साथ प्रेमव्यवहार विनोद विया । उसे विश्वस्त दासीके हाथ सौंपनेके वाद सामने खड़ी हुई आनी रानियोंके तरफ कुछ मुसकराते हुए देखा। पिछले मुक्कामकी अपेक्षा उन देवियोंकी मुखचर्यामें थकावट अधिक दिख रही है । जहाँ जहाँ मुत्रकाम करते हैं, वहाँ सबसे पहिले रानियोंसे सम्राट् पूछते रहते हैं कि आप लोगोंको कोई कष्ट तो नहीं है । आज रानियों का मुख म्लान हुआ है । पसीना आया हुआ है । इसलिए मनमें कुछ खिन्न होकर कहा कि देवियों! आप लोग बैठ जावें । आप लोगोंको देखनपर मालूम होता है कि आज बहुत-बहुत थक गई। जरा विश्रांति लो। भरतेशकी बातको सुनकर उन रानियों को भी हँसी आई. हमती-हँसती ही बैठ गईं। फिर भरतेश कहने लगे कि क्या आप लोगोंकी पालकियोंको बहुत वेगसे लेकर आये ? उसीसे शरीर हिलकर आप लोगोंको यह कष्ट हुआ होगा । आप लोगोंका मुख म्लान हो गया है। धपसे कष्ट हुआ मालम होता है। मेरे साथमें आनेसे लोगोंकी अधिक भीड़से आप लोगोंको कष्ट होगा, इस विचारसे आप लोगोंको पीछेसे अलग ही आने की व्यवस्था की गई थी। फिर भी कष्ट हुआ ही। हाँ ! क्या आप लोगोंको किसीने गुलाबजल वगैरह भी नहीं दिया? मान लो! आप लोग चुप रही। आपके साथ जो दासियों नियुक्त हैं वे चुप क्यों बैठों ? उनको तो विचार करने का था। क्या प्राण जानेपर वे काममें आती ? क्या करें! दुःख हुआ, इस प्रकार सम्राट् बहत दुःखके साथ कहने लगे। तब रानियोंने कहा कि स्वामिन् ! आप इन बेचारी दासियोंपर क्यों रुष्ट होते हैं ? उनका क्या दोष है ? आज पूर्वसागरको देखनेकी हमें उत्कट इच्छा हो गई थी। हम लोगोंने ही जल्दी चलने की आज्ञा दी थी। हमारी आज्ञाके अनुसार उन लोगोंने कार्य किया। इसमें उनका क्या दोष है ? इन दामियोंने व विश्वस्त लोगोंने हमें कहा कि जरा धीरेसे चलनेसे ही ठीक होगा। नहीं तो स्वामी भरतेश्वर हम पर रुष्ट होंगे । तब हम लोगोंने ही उनकी बातको न सुनकर जल्दी चलनेके लिए कहा । यह हमारा अपराध है। इसके लिए आप क्षमा करें। आपको मालम होगा कि इसी मुक्कामके लिए ही हम लोग आतुरताके साथ आई।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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