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________________ भरतेश वैभव पाषाण, वृक्ष, सर्प, पशु, मृग भी गायनसे मुग्ध होते हैं, तब फिर क्या रसिक मनुष्य मुग्ध नहीं होंगे? उनके गायनसे सारी सभा अपनेको भूल गई। जब बाँसुरीसे पशु, नागस्वरसे सर्प, कन्याध्वनिसे वृक्ष, गुण्डाकीसे पाषाण भी वश होते हैं तब मनुष्योंके मुग्ध होनेमें क्या आश्चर्य है ? गायन विद्या एकांत दृष्टिसे न तो अच्छी है और न बुरी ही है । यदि उम गायनमें पुण्यानुबन्धिनी कथा ग्रथित हो, धर्माचरणका आदर्श विद्यमान हो, और उद्देश्य पवित्र हो तो वह गायन हित करनेवाला है । पुण्यबन्धका कारण है । जिम गायनमें नीच स्त्रियोंकी वृत्ति हिंसा, वालह आदिका वर्णन हो, वह पापबन्धका कारण है और हेय है। ___ अमल मुनियोंके समूहमें कमलकणिकाको स्पर्श न कर विमल प्रकाशयुक्त भगवान् अहंत समवशरणमें विराजमान हैं। उनके गुणोंका वर्णन करते हुए भक्तिसे वे गाने लगे। ___ क्या ही आश्चर्यकी बात है ? कमलके ऊपर भी चार अंगुल छोड़कर निराधार आकाश में खड़े रहनेकी सामर्थ्य अहंत परमेष्ठीके सिवाय और किसकी है ? क्या उन्हें रहनेके लिये धरातलकी आवश्यकता है ? पुष्पकी भी क्या आवश्यकता है। जिन्होंने सारं ससारको लात मारी है उन्हें किस वस्तुको आवश्यकता है ? . ___ सरोवरमें कमलका आवास, जंगलमें सिंहका रहना लोक प्रसिद्ध है तथा ऐसी पद्धति भी है। परन्तु देवोंके बीचमें सिंह, सिंहके ऊपर कमलका रहना यह तो महदाश्चर्य है यह जिनेश्वरकी हो महिमा है । आकाशमें एक चन्द्रका तो हम दर्शन करते हैं परन्तु तीन चन्द्र एक जंगह शोभित हों यह तीन छत्रधारी जिनेन्द्रभगवानकी ही महिमा है। देवगण जिस समय आकाशसे पुष्पवृष्टि कर रहे थे उस समय उन पुष्पोंकी मुगन्धसे आकृष्ट हो जो भ्रमर आते थे उनकी शोभा दर्शनीम थी। भगवान्के समीप में रहनेवाला अशोक वृक्ष कितना अच्छा दिख रहा है। क्या यह नवरत्नसे निर्मित तो नहीं है ? भगवान्की दिव्यध्वनि सचमुचमें दिव्य है, क्योंकि भगवान् दिव्य हैं, उनका मुख दिव्य है, उनका दर्शन दिव्य है, उनका ज्ञान दिव्य है, उनकी शक्ति दिव्य है और उनकी सिद्धि दिव्य है, भला ऐसी स्थितिमें
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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