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भरतेश बंभव भरतेश अपने लिये निर्मित सुन्दर भद्रमुख नामक महलमें प्रवेश कर गये।
उस महलमें प्रविष्ट होकर जब भरतेशने वहाँपर शृङ्गारसे युक्त एक विवाह मण्डपको देखा तो उनके आश्चर्यका ठिकाना नहीं रहा। वे उसी दष्टि से उसे देखने लगे थे। वहाँपर पासमें ही रानी कुसमाजी खड़ी थी। उसने कहा कि स्वामिन् ! यह आपके लिये भविष्यकी मंगल सुचना है। आज मेरी बहिनका विवाह इस मण्डपमें आपके साथ होगा। तब सम्राट्ने प्रश्न किया कि देवी! नगरमें रहते हुए यह कार्य तुमने क्यों नहीं किया ? बाहर इसकी तैयारी क्यों की गई है।
स्वामिन् ! मैंने पिताजीको पहिलेसे ही सूचना भेजी थी। परन्तु उनके आनेमें कुछ देरी हुई। इसलिये विवाहका योग इस स्थानपर आया । आजही रातको विवाहके लिये योग्य मुहूर्त है, इस प्रकार ज्योतिषियोंसे र्णियकर पिता जी आये हैं। मेरी बहिन भी पूर्ण यौवन व सौंदर्यसे युक्त है। इस प्रकार बोलती हुई राजाके साथ ही अन्दर गई । वहाँपर भरतेशने अपनी स्त्रियोंको साथ लेकर एक पंक्तिमें निरन्तराय भोजन किया और कहने लगे कि यह हमारे लिये भविष्य में होनेवाली विजयकी सूचना है। जयलक्ष्मी भी इस दिग्विजय प्रयाणमें इसी प्रकार मेरे गले में माला डालेगी, जिस प्रकार कुसुमाजीकी बहिन डालेगी।
इतनेमें सूर्य अस्ताचलपर चला गया। संध्याराग यत्रतत्र दिखने लगा। भरतेशने सायंकालके संध्यावन्दनको किया। बादमें अर्ककीर्ति कुमारके पास जाकर उसे प्यार किया। अनन्तर विवाह योग्य वस्त्रादिकसे शृङ्गार कर स्त्रियोंके साथ विनोद वार्तालाप कर बैठे थे। विवाहका मुहूर्त अतिनिकट है, इसकी सूचना पाकर भरतेश विवाह मण्डपमें दाखिल हुए । वहाँपर अखण्ड अक्षतोंकी पंक्ति शोभित हो रही थी। उसपर आप खड़े हो गये।
पासमें ही श्वसुरके माथ कुसूमाजीका सहोदर कमलांक खड़ा था। उसके साथ विनोद करनेके विचारसे भरतेश बोले किं कमलांक ! तुम्हारी यह बहिन कुसुमाजीके समान नहीं है । इसने बहुत क्रोधके साथ मेरा तिरस्कार किया था। वह लोकमें अपनेको असमान समझती है। ऐसी अवस्थामें फिर भी लाकर मेरे साथ ही उसका विवाह करना क्या यह बुद्धिमत्ता है ? तब कमलांक बोला कि राजन् ! लोकमें
*प्रथमभागकी सरस संधिको देखें।