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________________ २०१ भरतेश वैभव उनके साथ अगणित सेना मौजूद है। अपनी मदजलधाराको बहाते हुए जमण करनेवाले मंगलहाथी उस सेनामें चौरासी लास्त्र हैं। इसी प्रकार अपनी सुन्दर चाल व चीत्कारसे बड़े बड़े पर्वतको भी शिथिल करनेवाले सुन्दर रथ चौरासी लास्त्र हैं। सामान्य घोड़ोंकी संख्या हमें मालूम नहीं। वह अगणित थे, परंतु उत्तम व सुन्दर लक्षणोंसे युक्त घोड़े अठारह करोड़की संख्यामें थे। सामान्य सेवकोंकी बात जाने दीजिये । परन्तु उत्कृष्ट क्षत्रिय जातिमें उत्पन्न जातिवीरोंकी संख्या चौरासी करोड़ थी । इसी प्रकार रणभूमिमें शोभा देनेवाले व सम्राटके अंगरक्षण के लिए सदा कटिबद्ध त्र्यन्तर कुलोत्पन्न देव सोलह हजार थे । इस प्रकार चतुरंग सेना से युक्त होकर भरतेशने उस विजय वृक्षसे आगे बढ़नेकी तैयारी की। उनके इशारेको पाकर करोड़ों बाजे बजने लगे। उस विजय वृक्षको अपनी दाहिनी ओर कर विजयपर्वत हाथीको चक्रवर्तीने चलाया । उस हाथीके आगेसे ध्वजमाहित चनरल चमक रहा था। दाहिनी ओर, आगे और पीछे सब जगह सेना ही सेना है । बीच में मुमेरुके समान सम्राट बहुत शोभाको प्राप्त हो रहे हैं। भरतेश्वरके आश्रित राजागण अपनी अपनी सेना व वैभवके साथ उनका अनुकरण कर रहे हैं और सब लोग जयजयकार करते हुए उनकी शुभभावना कर रहे हैं। इस प्रकार अचिन्य वैभवके साथ भरतेश अयोध्यानगरसे कुछ ही दूर गये हैं । वहाँपर मय ( व्यन्तर ) के द्वारा रचित मुक्कामके स्थानको उन्होंने देखा । वहाँपर भरतेश्वरने अपने दीर्घ हस्तसे सब सेनाओंको इगारा कर दिया कि सब लोग बहीपर ठहरें। सब राजाओंके लिए हैसियतके अनुसार विश्वकर्मा रत्नने सबको अलग अलग महलोंका निर्माण कर रखा है। सब लोग बिना किसी प्रकारके कष्टके उन महलोंमें प्रवेश कर गये। पर्वतपरसे उतरने के समान सम्राट स्वयं हाथीपरसे उत्तरे। विद्वान व वैश्याओंको उन्होंने भेज दिया एवं अपनी महलकी ओर गये। उनके साथ बहुतसे लोग थे। महलके बाहर खड़े होकर सब साथियोंको कहा कि अब शामके भोजनका समय हो चुका है। अब आप लोग चले जाइयेगा। इस प्रकार बुद्धिसागर, सेनापति व गणबद्ध देवोंको वहाँसे विदा देकर
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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