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भरतेश वैभव
हिल रहे थे, उससे ऐसा मालम हो रहा था कि शायद वह बनी वृक्ष लोगोंको अपने पाम बनी ( आओ ) ऐसा कह रहा हो। उस विजय वृक्षकी बेदिकाके चारों तरफ अनेक चामर, झालरी आदिकी शोभा है और गाजे बाजोंका सुन्दर शब्द हो रहा है।
गजा भरत भी उस वक्षके पास चले गये । एक बार उन्होंने हाथी को ठहराकर अंकुशपर हाथ रखकर वीरष्टि से चारों ओर देना । जिधर देखते हैं उधर हाथी हैं, घोई हैं, रथ हैं, अगणित मेनायें हैं । अपनी अपनी विशाल मेनाओंको लेवार छप्पन देशके गजागण उपस्थित हैं।
भरलेश्वरका मेनापनि जयराज है, उसे अयोध्यांक भी कहते हैं । उसने सारी मेनाकी तावस्था की है। इन्ह नाटक है। अलिटीरहेकर विवेकी है और अमल क्षत्रिय है। वह मम्राट्कै पास में ही है।
दुपहरको नीमरे प्रहरमें राजदरबार लगा। सेनापति जयराजके इगारेको पाकर यहा उपस्थित मब राजाओंने आकर सम्राट् भरनेशका दर्शन लिया।
अनेक शृंगारसे युक्त घोड़े पर चढ़कर अंग देशके राजा आये और उन्होंने बहुत आदरके माथ राजा को नमस्कार किया। इसी प्रकार पल्लव, केरल, कन्नौज, करहाट, सौराष्ट्र, काशी, तिगुळदेश, तेलगूदेश, हुरमंजि, पाग्मी, चेर, मिन्धु, कलहरि, ओड्डि पांड्य, मिहल, गुर्जर, नेपाल, विदर्भ, चीन, महाचीन, भोटु', महामोटु, लाट, महालाट, काश्मीर, नुरुक, कर्णाट, कांभोज, वंग, वृत्त, चित्रकुट, पांचाल, गोल, कालिग, मालब, मनका. बंगाल, साम्राणि, कुंतल, हम्मीर, गौड़, कोकण, तुळु देश, रग, मलय, मगध, हैव, महाराष्ट्र, दुपारी, मलेयाळ, कोङगु, बाल्हिन, मले, मधुर, चोल, कुरुजांगल, मथुरा आदि अनेक देशोंक गजा अपने अपने अद्वितीय वैभवके माथ आये व भग्नेशको बहुत आदरके माथ नमस्कार कर एक तरफ खड़े हुए। विशेष क्या ? छह व गड़क गजाओम आर्य खण्डके समस्त राजा वहाँ उपस्थित थे । पाँच म्लेच्छ वाडके गजा वहाँपर नहीं थे।
आर्यवंडक अधिपति तो मम्राटके अधीन हो चुके । अब म्लेच्छखंडके गजाओंको बम में करने के लिए इस सेनाको एकत्रित किया है। __ नीनों समुद्रोंके अधिपति तीन व्यन्तरेन्द्र हैं। उनको वशमें करनेके बाद पांच म्लेच्छ खंडोंकी ओर भरतेश बढ़ेंगे ।