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भरतेश वैभव मनमें मेरे प्रति विरोध क्यों रखते हैं। मंत्री ! क्या तुम नहीं जानते हो ! बोलो तो सही!
बुद्धिसागर ! जिनेन्द्रका शपथ है ! मैंने तुमसे ही अपने भाइयोंके व्यवहारको कहा है और किसीसे भी आजतक नहीं कहा है। यहाँतक कि पूज्य मातुश्री भी अपने पुत्रोंकी हालत जानकर दुःखी होंगी इस भयसे उन लोगों की प्रशंसा ही करता आ रहा हैं।
छह भाई दीक्षा लेकर मुनि हो गये। वे मेरे भाई होनेपर भी अब गुरु बन गये । परन्तु इनको तो देखो! इनको अनुज कहूँ या दनुज कहूँ ? समझमें नहीं आता ।
स्वामिन् ! बुद्धिमागर बोले । आप जरा सहन करें, वे आपसे छोटे हैं । आपके साथ उन्होंने ऐसा व्यवहार किया तो आपका क्या बिगड़ा है ? थे मूर्ख हैं। आपके साथ प्रेमसे रहनेके लिए अत्यधिक पुण्यकी जरूरत है।
तीन लोकमें जितनेभर बुद्धिमान हैं, विवेकी हैं, ये सब तुम्हारे चातुर्यको देखकर प्रसन्न होते हैं । यदि छह कम सौ मनुष्य तुम्हारे साथ नाक-भौं सिकोडकर रहें तो क्या बिगड़ता है ?
राजन् ! सूर्यकी उन्नतिको देखकर जगत्को हर्ष होता है। यदि नीलकमल मुकुलित होवें तो उसमें सूर्यका क्या दोष है ?
यह भी जाने दीजिये ! असली बात तो और ही है। तुम्हारे भाई उद्धत नहीं हैं । मैं उनको अच्छी तरह जानता हूँ। वे तुम्हारे पासमें आनेके लिये डरते हैं। क्या तुम्हारी गंभीरता कोई सामान्य है ?
राजन् ! इस जवानीमें अमणित संपत्तिको पाकर त्यायनीतिकी मर्यादाको रक्षण करने के लिये तुम ही समर्थ हो गये हो । तुम्हारे भाइयोंको यह कहांसे आ सकता है। अभीतक उन्होंने उसको नहीं सीखा है । इसलिए वे तुम्हारे पासमें आनेके लिये शर्माते हैं।
राजन् ! तुम्हारे जितने भी सहोदर हैं वे अभी छोटे हैं। उनकी उमर भी कुछ अधिक नहीं है। ऐसी अवस्थामें वे अभी बचपनको नहीं भूले हैं । इसीलिये ही वे बाहुबलीसे डरते नहीं, अपितु आपसे डरते हैं ।
बाहुबली के साथ किसी भी प्रकार अविवेक व हँसी-खुशीसे बर्ताव करें उससे बाहुबली तो प्रसन्न ही होता है। परन्तु तुम पागलपनेको कभी पसंद नहीं करोगे यह वे अच्छी तरह जानते हैं । इसलिये तुम्हारे सामने नहीं आते हैं । वे अपने ही बर्तावसे स्वयं लज्जित हैं। इसलिये उस लज्जाके मारे तुम्हारे पास नहीं आते हैं । अभिमानखे तुम्हारे पास