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भरोग भा . नहीं आते हैं यह बात नहीं। कल वे अपने आप आकर तुम्हारी सेवा करेंगे, आप चिता क्यों करते हैं ? ___ मंत्रीके चातुर्यपूर्ण वचनको सुनकर चक्रवर्ती मन ही मन हेसे व ठीक है ! ठीक है ! मंत्री ! तुम बिलकुल ठीक कह रहे हो ! इस प्रकार कहते हुए बांधवों में प्रेम संरक्षण करनेके मंत्रीके तंत्रके प्रति मनमें ही बहुत प्रसन्न हुए।
इतनेमें मध्यरात्रिका समय हो गया था। उस समय "जिनशरण" शब्दको उच्चारण करते हुए भरतेश वहौसे उठे व मन्त्री और सेवकोंके साथ शस्त्रालयकी ओर चले। ___ उस समय शस्त्रालयकी शोभा कुछ और थी । अनेक शस्त्र वहाँपर व्यवस्थित रूपसे रखे हुए थे। उनकी बलि, पुष्प, चंदन इत्यादिक पूजाओंसे वहांपर वीर रस बराबर टपक रहा था। पंचवर्णके अनेक भक्ष्यविशेष व अनेक नवेद्य विशेषोंसे शस्त्रपूजा हो रही थी इसी प्रकार होम भी हो रहा था जिसमें अनेक आज्य अन्न आदिकी आहुति भी दी जा रही थी। धूपसे धम निर्गमन, दीपसे प्रज्वलित ज्वाला व अनेक वर्णके पुष्प, अनेक फल आदि विषयोंसे वहाँ अनुपम शोभा हो रही थी। माला, खड्ग, कटारी, गदा आदि अनेक अस्त्र-शस्त्रोंको देखनेपर एकदम राक्षस या मारिके मंदिरका भयंकर स्मरण आता था। खड्ग, गदा व चंद्रहास आदि दण्डरत्नोंको जिस प्रकार वहाँपर रखा गया था उससे सर्प मण्डलका ही कभी कभी स्मरण होता था।
रतिहास आदि कितने ही आयुध वहाँपर अग्निको ही वमन कर रहे थे।
सानन्दक नामक एक खड्ग ( असि रत्न तो इस प्रकार मालम हो रहा था कि कब तो चक्रवर्ती दिग्विजय के लिए प्रयाण करेंगे, कब हमें शत्रुओंका भक्षण करनेके लिये अवसर मिलेगा इस प्रकार जीभको बाहर निकालकर प्रतीक्षा कर रहा है। ____ कालकी डाढ़के समान अनेक खगोंके बीचमें सूर्यके समान तेज: पुंज बक्ररत्न यहाँपर प्रकाशित हो रहा है । चक्रवर्तीने खड़ा होकर उसे जरा देखा। ___चक्रवर्तीसे मंत्रीने प्रार्थना की स्वामिन् ! आजतक इस चक्ररत्नकी महावैभवसे पूजा हो गई । कल वीरलग्न है, योग्य मुहूर्त है। इसलिये विग्विजयके लिये आप प्रस्थान करें।
इस वचनको सुनकर चक्रवर्तीने उस चक्ररत्नपर एक कमलपुष्पको