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________________ १८६ भरतेश वैभव जो दिग्विजयका विचार किया है यह स्तुत्य है। उनकी वीरता के लिए वह योग्य कार्य है उनका सामना करनेवाले हम पृथ्वी में कौन है ? साथ में अभिमान के साथ उन्होंने यह भी कहा कि "इस पृथ्वी में देवमं पिताजी, राजाओंने मेरे बावाजी की बराबरी अन हैं ? हम लोग तो उन दोनोंको स्मरण करते हुए जीते हैं" प्रणयचन्द्र मंत्री ने कहा | स्वामिन्! आपके सहोदर इस अवसर पर स्वयं आशीर्वाद लेने के लिए आनेवाले थे । परन्तु वे अनिवार्य कारणसे आ नहीं सके । कारण कि वे एक शास्त्रको सुननेमं दत्तचित हैं। आचार्य महाराज आत्मप्रवाद नामक शास्त्रका प्रवचन कर रहे हैं। बहुत संभव है, कि कल परसोंतक वह ग्रन्थ पूर्ण हो जायेगा । स्वामिन और एक गूढार्थ आपसे निवेदन करनेका है। उसे भी सुनने की कृपा करें । “गूढ़ार्थ" शब्दको सुनते ही बुद्धिमान् लोग वहाँसे उठकर चले गये। वहाँ एकांत हो गया । प्रजा, परिवार, सामन्त, मांडलिक, मित्र विद्वान, नृत्यकार आदि सबके सब क्षणमात्रमें जब वहाँसे चले गये तब प्रणयचन्द्र बहुत धीरे-धीरे कुछ कहने लगा । बुद्धिसागर मंत्री पास ही बैठा है । स्वामिन् ! विशेष कोई बात नहीं, आपकी मातुश्री जगन्माता यशस्वत महादेवीको पोदनपुरमें ले जानेकी इच्छा आपके सहोदरने प्रदशित की है। बहुत देरी नहीं है, कल या परसों तक शास्त्रकी समाप्ति हो जायगी। उसके बाद वे स्वयं ही यहाँ पधारकर मातुश्री को पीदनपुरमें ले जायेंगे, इस बातकी सूचना देनेके लिये उन्होंने मुझे यहाँ भेजा है । राजन् ! जब तक आप दिग्विजय कर वापिस लौटेंगे तबतक माता यशस्वती देवीको अपने नगर में ले जानेका उन्होंने विचार किया है, मातासे पुत्र विमुक्त रह सकता है क्या ? ני प्रणयचन्द्रके इस प्रकारके बचनको सुनकर चक्रवर्तन हा कि पुत्रके घर में माताका जाना, माताको पुत्रका बुला ले जाना कोई नई बात है क्या? ऐसी अवस्थामें इस संबंध में मुझे पूछने की जरूरत क्या है ? मैं भी मातुश्रीके लिये पुत्र हूँ। वह भी पुत्र है, इसलिये उसे भी माताजीको ले जानेका अधिकार है । में माता की आज्ञाके अनुवर्ती हूँ । मातुश्री की आज्ञाका सदा पालन करना मैं अपना धर्म समझता हूँ | पूज्य माता ही मुझे हमेशा सन्मार्गका उपदेश देती रहती हैं। शिक्षा
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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