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________________ भरतेश वैभव १८५ कहीं राजाओंका सन्मान हो रहा है । कहीं विद्वानोंका आदर हो रहा है इस प्रकार नौ दिनतक सम्राट्ने बहुत आनन्दके साथ काल व्यतीत किया । नवमी के दिन दरबार बरखास्त करनेके लिये अब कुछ ही समय अवशेष है। इतने में एक सुन्दर व दीर्घकाय भद्रपुरुषने दरबार में पदार्पण किया। सबसे पहिले चक्रवर्ती के सामने कुछ भेंट समर्पण कर उसने साष्टांग प्रणाम किया । भरतेशने भी उसे योग्य स्थानमें बैठनेके लिए अनुमति दी । यह अभ्यागत कौन है ? भरतेशके लघु भ्राता युवराज बाहुबलीके हितैषी मंत्री प्रणयचन्द्र हैं । जैसा उसका नाम है वैसा ही गुण है, अतिविवेकी हैं, दूरदर्शी है भरतेश कुछ समय इधर उधरकी बातचीतकर उससे पूछने लगे कि प्रणयचन्द्र ! मेरा भाई बाहुबली कैसा है ? और किस प्रकार आनंदसे अपने समयको व्यतीत करता है ? उसकी दिनचर्या क्या है ? एवं हमारे दिग्विजय प्रयाणके समाचारको सुननेके बाद क्या बोला ? वह कुशल तो है ? भरतेशके प्रश्नको सुनते ही प्रणयचन्द्र उठकर खड़ा हुआ और बहुत विनयके साथ हाथ जोड़कर कहने लगा कि राजन्! आपकी कृपा से आपके सहोदर कुशल हैं। उन्हें कोई चिंता नहीं और कोई बाधा भी नहीं । सदा वे सुखसे ही अपना काल व्यतीत कर रहे हैं। क्योंकि वे भी तो भगवान् आदिनाथ के पुत्र हैं न ? . स्वामिन्! कभी कभी काव्य, नाटकका श्रवण व अवलोकन कर आनन्द करते हैं, कभी नृत्य देखते हैं और कभी कामिनियोंके दरबार में काल व्यय कर हर्ष प्राप्त करते हैं । कभी कभी वे शृंगारवनमें क्रौड़ा करने के लिये जाते हैं। कभी कभी महल में अपनी प्रिय रानियोंके साथ साथ बैठकर ठण्डी हवा खाते हुए कोकिल पक्षी, भ्रमर, तोता आदिके विनोदको देखकर आनंदित होते हैं । भोगोंको सदा भोगते हैं परन्तु उसमें एकदम मग्न न होकर योगका भी अभ्यास करते हैं। राजन् ! वे भी तो आपके सहोदर हैं न ? यह हमारे राजाकी दिनचर्या है । अस्तु आपके दिग्विजय प्रथाणकी वार्ता उन्होंने सुनी है । उसे सुनकर उन्हें बड़ी प्रसन्नता हुई है । इस संबंध में बोलते हुए उन्होंने हमसे कहा है कि मेरे बड़े भाईने
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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