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________________ १८४ भरतेश वैभव जिस प्रकार सूर्यका किरण जिधर भी पड़े उधर ही कमल खिल जाता है उसी प्रकार राजा जिधर भी देखें उसी तरफ विनोद, खेल व कला को लोग बता रहे हैं। कितने ही पहलवान सामने कुस्ती खेल रहे हैं। एक इन्द्रजालिया राजाके चित्तको आकर्षण करते हुए एक बीजको वहाँ पर बोया । तरक्षण ही वह बीज शूज ! वन हो गया उसमें कच्चे फल लग गये । इतना ही नहीं, उस समय वे पक भी गये । सव दरबारियोंको उसे देखकर आश्चर्य हुआ। एक मंत्रकार और सामने आया, आकर एक घासके टकडेको मंत्रितकर रखा। बहतसे सर्प उस घामसे निकलकर इधर-उधर भागने लगे। एक इंद्रजाली सामने आकर प्रार्थना करने लगा कि दयानिधान इंद्रावतारको आप देखें। उसी समय उसने अपनी कलाके द्वारा देवेन्द्रके अवतारको बतलाया। एक महेन्द्रजालीने समुद्रका दृश्य बतलाया । इसी प्रकार गंधर्व लोग अपनी नृत्यकलाको बतला रहे थे। उस दिन अयोध्यानगरके प्रत्येक गलीमें जिधर देखें उधर आनंद ही आनंद हो रहा है। हाथी, घोड़ा व रथोंका श्रृंगार कर राजमार्गों में बड़े ठाटबाटके साथ जुलूस निकाली जा रही है। पट्टके हाथीपर भगवान जिनेंद्र की प्रतिमा विराजमान कर विहारोत्सव मनाया जा रहा है । उस हाथीका नाम विजयपर्वत है। उसपर जिनेंद्र भगवंतकी प्रतिमा अत्यंत शोभाको प्राप्त हो रही है। राजाने दूरसे ही हाथीपर जिनेंद्रबिंबको देखा। उसी क्षण भक्तिसे उठकर खड़े हुए। जब सब हाथियोंने भरतेशका दर्शन किया तब कुछ झुककर व अपनी सड़को उठाकर चक्रवर्तीको प्रणाम किया। सम्राटके रानियोंने भी दरवाजेके अंदरसे ही त्रिलोकीनाथ भगवंतका दर्शन किया एवं बहुत भक्तिसे आरती उतारी । रथ आगे चला। चंद्रमार्ग, सूर्यमार्ग आदिपर भी भगवानका रथविहार हो रहा था। इस प्रकार प्रतिपदासे लेकर नवमीतक अनेक प्रकारसे धर्मप्रभावना हो रही थी। प्रतिदिन भिन्न भिन्न प्रकारके श्रृंगार, शोभा, प्रभावना व रययात्रा आदि देखने में आते थे। ___ कहीं शांतिकक्रिया, कहीं दान, कहीं त्याग, कहीं वैयावृत्य आदि शुभकार्यासे सब अपना समय व्यतीत कर रहे हैं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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