SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भरतेश वैभव उसके दोनों ओरसे द्वारे जानेवाले चमरोंके बीच में थे धवल मेघके मध्यस्थित चन्द्रसूर्यके ममान वह शोभायमान हो रहा था। एक ओर अधीनस्थ नरेन्द्रमंडल है तो दूसरी ओर नर्तकी, कवि, मंत्री आदि बैठे हुए थे। उसके सिंहामनके पीछे हितैषी-अंगरक्षक खड़े हुए थे। 'हल्ला मत करो' ! इधर सुनो ! अपनी जगह पर बैठिये । इत्यादि प्रकारके शब्द उस राजसभामें सुनाई दे रहे थे । कोई-कोई कहते थे, यह राजसभा है, इसमें हल्ला नहीं करना चाहिए, हमना नहीं चाहिये, इधर-उधर जाना नहीं चाहिये। कुछ बुद्धिमान लोग, सम्राट भरतेशके मनोभावको जानकर एवं दूमोंके विचारोंको समझकर कभी-कभी कुछ समयोचित भाषण करते थे। मण्डलीक राजाओंके, राजकुमारोंके, मन्त्रियोंके, पण्डितोंके एवं गायकों के समूहसे वह राजसभा पूर्णरूपसे भरी हुई थी। याचक्रगण, स्तुतिपाठ करनेवाले, वैद्य, ज्योतिषी, महावत सैनिक वाहकगण एवं सेवक लोग उस राजसभामें उपस्थित थे तथा भरतेश्वरकी शोभा देख रहे थे। जैसा कमल सूर्यको देखता है, नीलकमल चन्द्रको निहारता है, इस प्रकार उस सभामें उपस्थित समाज सम्राट भरत के दर्शनमें लीन था और अन्य बातोंको भल गई थी। इम प्रकार उस समय सभी लोग उसकी ओर देख रहे थे। उस समय सम्राट ने अपनी दुष्टि गायकोंपर डाली और उन लोगोंने महाराजके अभिप्रायको जानकर गायन आरम्भ कर दिया । . वहाँ रोमांचनसिद्ध, जुजुमालप, गानामोदचंचु, श्रीमन्त्र गांधार रागवर्तक आदि प्रसिद्ध गायक थे । बहुत मुंह न खोलकर अपने शरीरको इधर-उधर न हिलाकर बड़ी कुशलतापूर्वक वे गान करने लगे। वे गाते समय घबराये नहीं। उनने बहुत अधिक ध्वनि भी नहीं की, इस प्रकार कुछ गायकोंने गान द्वारा सम्राट् भरतका मन प्रसन्न किया। जब उनने रागभंग न कर बहुत कुशलता के साथ प्रातःकालके योग्य राग आलाप किया, तब ऐसा प्रतीत होता था कि मानों श्रोताओंके अंतःकरणमें शीतलपवन बह रही है।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy