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________________ भरतेश वैभव वह चक्रवर्ती भरत कंठमें रत्न एवं मोतीका हार धारण किया हुआ है। हारोंके बीच में स्थित उसका सुन्दर मुखकमल दिन में भी नक्षत्रोंक मध्यमें विद्यमान चन्द्रके समान शोभायमान हो रहा था। ___ इस प्रकार वह अनेक प्रकारसे शोभाको प्राप्त हो रहा था। कोई इसे कविका कल्पनाचातुये कहकर छोड़ न देव । क्योंकि वह आदिनाथ स्वामीका पुत्र है। वह कर्मोके शत्रु चरमशरीरी है। उसके लिये क्या यह सब बातें असम्भव हैं ? हम सरीखे सामान्य देहवालोंको यह आश्चर्यफी बात दिखेगी। किन्तु वज्रमय शरीरवाले उस चक्रवर्ती के विषयमें क्या आश्चर्य है ? वह तो करोड़ों सोंके समान प्रकाशवाले परमौदारिक दिव्य शरीरको धारण करनेवाला है। उसके रूपका कोई चित्र आदिके अवलंबनसे चित्रण नहीं कर सकता। जो रूप नेत्रों तथा मनको गोचर नहीं हो सकता, भला वह कैसा वचनगोचर हो सकता है ? पुरुषोंके रूपपर स्त्रियोंका तथा स्त्रियों के रूपपर पुरुषोंका मोहित होना स्वाभाविक है। परन्तु सम्राट भरतके सौन्दर्यपर स्त्री और पुरुष दोनों मुग्ध होते थे। ____ भरतको देखनेपर अत्यन्त वृद्धा भी एक बार मचलकर उठती थी। ऐसी अवस्थामें युवतियोंकी क्या दशा होती होगी यह अब कहनेकी आवश्यकता नहीं है । भरत सदृश सुन्दर शरीर, योग्य अवस्था, अतुल संपत्ति, अगाध गांभीर्य एवं अनुपम पराक्रम अन्यत्र अनुपलभ्य है। ___ अहा ! इन सब विशेषताओंको प्राप्त करनेके लिए उसने पूर्व भवमें ऐसे कौनसे पुण्यकार्य किये होंगे? अथवा भक्तिसे भगवानकी कितनी स्तुति की होगी ? नहीं तो ऐसा वैभव कसे प्राप्त हुआ ? अधिक क्या कहें ? पूर्वभवमें उसने आत्मा और शरीरका भेद विज्ञान करके आत्मकला की अच्छी साधना की थी। आत्मध्यानका अभ्यास किया था। उसीके फलसे यह सब कुछ प्राप्त हुए हैं। यह विभूति सबको कैसे मिल सकती है ? । उसका दर्शन करनेवालोंको नेत्रोंमें थकावट नहीं आती थी। प्रशंसा करनेवालोंको आलस्य नहीं आता था। देखकर तथा स्तुतिकर तृप्ति ही नहीं होती थी। सब लोग विचार करते थे, यह रूप, यह संपत्ति, यह बल आदि और किसीको मिल नहीं सकते। कदाचित् मिले भी तो शोभा नहीं दे सकते।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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