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भरतेश वैभव
१७९ माता यशस्वती कहने लगी बेटा ! मुनियोंकी पूजा करना सिद्धांतबिहिन मार्ग है, मेरी पूजा करना उचित नहीं है । जरा विचार करो। __ भरतेश कहने लगे कि माता ! आप मुनियोंकी जननी हैं । वृपभसेनानायकी आप माता हैं। क्या बीरभूनि, अनंतविजयमूनि, अन्यनमुनि, मुवी रमुनि और अनन्तवीर्यमुनिको आप जन्मदात्री नहीं है ? लोक में यक्षयक्षियों की पूजा की जाती है, आप तो साक्षान् ब्रह्मचारिणी हैं, आपकी पूजा करनेमें कौनसा विरोध है ?
' माताने कहा बेटा भरत ! तुम्हारी वृत्तिको लौकिक लोग पसन्द नहीं गरे। कुछ न बुछ चीले विना नहीं रह सकते। मेरी पूजाकी आवश्यकता क्या है ? तुम इस प्रकारके कार्यको मत करो। लोकापत्रादको देखकर चलना चाहिये।
फिर भरतेगने कहा कि माता! जब सब लोग मेरी पूजा करते हैं तत्र मैं अपनी माताकी भक्तिसे पुजा करूं, इसमें दोष क्या है? अविवेकियोंके वचपनपर हमें ध्यान देना नहीं है। आप शांतचित्तसे बैठी रहें । हम तो पूजा करेंगे ही |
इस प्रकार कहकर दूसरी ओर देखकर कहा सामग्री लाओ। उन्होंने अपनी रानियोंको पूजाके लिये बलाया। तत्क्षण सभी रानियाँ सामग्री सहित उपस्थित हो गई और सर्वे मिलकर बहुत भक्तिसे पुजा करने लगे।
भरनेश मन्त्र बोलते हुए सामग्री चढ़ाते जा रहे हैं। वे स्त्रियां सामग्री थालीमें भरकर देती जा रही हैं। जल, गन्ध्र, अक्षत, पुष्प, चरू, दीप, धूप, फल व अर्घ्य इस प्रकार अष्टद्रव्योंसे माताकी पूजा सम्राट्ने की। कोई स्त्रियाँ चामर हारती हैं, कोई पुष्पवृष्टि करती हैं । कोई कुछ, कोई कुछ, इसप्रकार वे तरह-तरह से भक्ति कर रही हैं । माता चुपचाप बैठकर इनकी लीला को देख रही हैं। पूजा की ममाप्तिमें उन रानियोंने नवरत्नसे निर्मित आरती उतारी 1 भरनेशने अपनी देवियोंके साथ माताको नमस्कार किया। फिर माताकी बॉयों ओर वे बैठ गये । इसी प्रकार सब रानियों पंक्तिबद्ध होकर बैठ गई।
सासने वहओंको बलाकर अपनी पंक्तिमें भोजन करनेके लिए कहा व सबने एक माथ पारणा की । भरतचक्रवर्तीके महलके भोजन का क्या वर्णन करें ? क्षीरसमुद्रमें डुबकी लगानेपर जैसा हर्ष होता है उमी प्रकार अत्यन्त आमन्दके साथ उन्होंने भोजन किया ।
बादमें पारणाके श्रमकी निवृत्तिके लिये भरतेश माताको हाथका सहारा देते हुए विश्रांतिभवनमें ले आये, झूलेपर वहाँपर उन्होंने माताको