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________________ १७४ भरतेश वैभव देवीका भी उपवास था। उन्होंने भी अजिकाओं के साथ जागरणसे रात्रिको व्यतीत किया था। अब मुखमार्जन आदिके बाद देवपूजाकर मण्डपमें आकर बैठी हैं। आज माता यशस्वती देवीकी पारणा है, इस उपलक्ष्यमें उनके पुत्रोंने अपने स्थानले बहुमूल्य अनेक उपहार भेजे हैं। उन सबको देखती हुई यशस्वती महादेवी विराजी हैं। यशस्वती महादेवीको सौ सुन्दर पुत्र हैं। उनमेंसे छह पुत्र तो पहिलेसे दीक्षा ले गये थे। शेष ९४ पुत्र भिन्न-भिन्न राज्योंका पालन कर रहे हैं। उन सभी पुत्रोंने मातुश्रीको पारणाके उपलक्ष्यमें वस्त्र, कपूर, गंध, गुलाबजल आदि अनेक उत्तमोत्तम पदार्थ भेजे हैं । अयोध्यानगरके अधिपति सम्राट् भरत है और युवराज बाहुबलि हैं, जो पौदनपुरका राज्य पालन कर रहे हैं। उन्होंने भी अनेक अनर्घ्य वस्त्र रत्नादिक पदार्थोंको माताजीके लिए भेटमें भेजे हैं। बाहुबलि सुनंदा देवीके पुत्र हैं। वे कृतयुगके कामदेव हैं। अपनी मौमीके उपवासको पारणाके हर्ष के उपलक्ष्यमें उन्होंने रत्ननिमित पलंग मोतीके पंखे, माणिकनिर्मित जलपात्र एवं अगणित उत्तमोत्तम वस्त्र आदि उपहारमें भेजे हैं। बाहुबलिकी प्रधानदासी इन सब उपहारोंको लेकर माता यावतीकी सेवामें उपस्थित हई और बहत भक्तिसे नमस्कार कर खड़ी हो गई । माता यशस्वती देवीने उस दासीसे प्रश्न किया कि दासी ! हमाग छोटा बेटा कैसा है ? उसकी रानियाँ कुशल तो हैं न ? बड़े भाईके समान वह भी उपवास करता है या नहीं ? उस दासीने उत्तर दिया कि माता ! बड़े स्वामीके समान हमारे स्वामी अधिक व्रत नहीं करते हैं । उनको केवल एकभुक्तिका व्रत रहता . । है। उनके समान ही उनकी देवियाँ भी अल्प चारित्रमें ही रहती हैं। ___ तब माता यशस्वती देवीने फिर पूछा कि दासी ! बहिन सुनंदा देवीका क्या हाल है ? उसकी प्रवृत्ति किस प्रकार है ? वह दासी कर्ने लगी कि माता ! माता सुनंदादेवी तो बत, जप, उपवास व शरीर दमन आदि कार्य में सदा लगी रहती हैं। इसे सुनकर यशस्वती देवीने कहा, यह अच्छा हर्षप्रद समाचार सुनाया, अपनी दासियोंको बुलाकर आज्ञा दी कि इस पोदनपुरसे आई हुई दासीको अर्जिकाओंका आहार होते ही भोजन कराओ । सब तथास्तु कहकर वहांसे चली गई। अब यशस्वतीने देखा कि बहुएँ उनके दर्शनके लिये आ रही हैं।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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