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मरतेश वैभव
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देवी ! सुनो! पहिले पहल उपवास करना महान कष्टप्रद है | उदर में आग लग जाती है, परन्तु पीछे अभ्याम होनेपर यह उपवाम सरल हो जाता है । उसी उपवामी आगम कर्म भी भस्म हो जाता है ।
एक दिनका जपबाम भी कर्मको अच्छी तरह सताता है। आगे उससे कैवल्यकी प्राप्ति होती है। जन्ममरणका मकट टल जाता है। देवी ! मुक्तिकी प्राप्तिके लिये अभद भक्तिकी आवश्यकता है। अभेद भक्तिके लिये विरक्तिकी आवश्यकता है। विरक्तिके लिय यथाशक्ति तपकी आवश्यकता है, तप लिये युक्तिी आवश्यकता है। उपवास किया हुआ शरीर अत्यन्त उष्ण रहता है, दलिय बहुत मावधानीसे भोजन करना चाहिये । दो चार ग्रास लेनेके बाद एकदम चक्कर आता है । अतः उस समय सावधान रहना चाहिये ।
अन्न एकदम उतरता नहीं, पानी पीना अत्यधिक भाता है। प्यास अधिक लगती है परन्तु एकदम पानी पीना ठीक नहीं है। पहिले किसी तरल अन्नको ग्रहण कर आदमें धीरे धीरे माती वा चाहिये । पहिरोले पानी नहीं पीना चाहिये।
देवी ! जैसे नवीन मटकेपर पानी डालनेपर चुम् शब्द होता है उसी प्रकार नवीन ग्रास लेनेपर एकदम शरीरमं भी चुय होता है। चारों तरफसे पीलापना दिखने लगता है । उस समय घबराना नहीं चाहिये । पहिले पहल उपवाम कष्टप्रद मालूम होने पर भी बादमें उमसे महान् सुखकी प्राप्ति होती है। कर्म शिथिल होता है, मोक्षकी प्राप्ति होती है, यह भगवान आदिनाथकी आज्ञा है। इत्यादि अनेक प्रकारसे सम्राट्ने उन स्त्रियोंको पारणा करनेका विविध उपदेश दिया एवं कुछ स्त्रियों को पारणाके लिये जानेको कहा ! कुछ स्त्रियोंको माता यशस्वतीके पास भेजकर और कुछ स्त्रियों के साथ स्वयं महलकी और चले। जो स्त्रियां माता यशस्वतीकी ओर जा रही थी, उन स्त्रियोंसे भरतेशने कहा कि आप लोग माताजीके पास रहें । मैं शीघ्र ही मुनिदानकी क्रियासे निवृत्त होकर उधर आना है, तबतक आप लोग मेरी प्रतीक्षा करें।
उन्होंने अपने मायकी स्त्रियोंसे कहा आप लोग शीघ्र महल में जाकर मुनिदानकी तैयारी करें। मैं बाहर द्वार पर जाकर मुनियोंका प्रतिग्रहण करता हूँ। ऐसा कहकर भरतेश मुनियोंकी प्रतीक्षाके लिये गये । कुछ स्त्रियां पारणा करने के लिए गई, कुछ मुनि दानकी तैयारीके लिये गई और कुछ सासकी वन्दनाके लिये गई। उधर यशस्वती महा