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भरतेश वैभव
लगे कि देवी ! बहुत देरी हुई अब आप जल्दी जाकर पारणा करो । तब उन स्त्रियोंने सासको प्रणाम कर पारणा करनेका विचार प्रकट किया ।
सम्राट्ने कहा देवी ! आज आप लोग सासकी वंदना करती हुई विलंब न करें | नवीन संयमिनियोंके साथ मिलकर सब शीघ्र पारणा करें । साथमें इस बात का ध्यान रखें कि जो अनभ्यस्त उपवासिनी हैं, उनके पास कोई अभ्यस्त उपवासिनी खड़ी रहकर उनको योग्य रीति से पारणा करावे, यही सज्जनोंका कर्तव्य है 1
उन स्त्रियोंने कहा स्वामिन्! आप जैसी आज्ञा दें वैसा ही हम करेंगी, परन्तु हम अपने नियमानुसार एक बार अपनी मादको प्रणाम कर आयेंगी । स्वामिन्! हम लोगों के प्रति इस प्रकारका विचार आपके मन में क्यों हुआ ? हमें उपवासका कोई कष्ट नहीं हुआ है ।
सम्राट् कहने लगे देवी! मैं जानता हूँ कि आप लोग धैर्यवती हैं, परन्तु अधिक धूप होने से पित्तका प्रकोप होता है, इसलिए उसका ध्यान जरूर रखें । उन देवियोंने कहा स्वामिन् ! हमेशा हम लोग सासकी वन्दना करती है। आज तो पर्व दिन है, इसलिये आज हम उनके समीप गये बिना कैसे रह सकती हैं ?
देवी तुम लोग प्रतिदिन सासका दर्शन करो और आज नहीं करो तो कोई बात नहीं है । जाओ ! जल्दी पारणाकी तैयारी करो ।
स्वामिन् ! प्रतिदिन के समान हम लोग आज सासके दर्शन के लिये नहीं जाएँ तो उनके मनको क्या कष्ट नहीं होगा ?
देवी ! यदि मेरी आजाको आप लोग नहीं मानेंगी तो क्या तुम्हारी सास के बेटेको कष्ट नहीं होगा ! जरा विचार करो ! जाओ ।
यह सुनकर वे स्त्रियाँ हँसकर कहने लगीं, कि आज हम लोग माता यशस्वती देवी के दर्शनसे वंचित हो गई । अस्तु, हम पारणाके लिये जाती हैं |
देवी जाओ ! चिन्ता मत करो । पुत्रकी बात सुननेसे माता यशस्वती तुम लोगों से प्रसन्न हो जायेंगी। कुछ लोग नवीन उपवासियोंको भोजन कराने जाओ और कुछ लोग माताकी वन्दनाके लिये जाओ । देखो ! कोई चिन्ता मत करो। आज मातुश्री हमारे महलमें भोजन करें ऐसी व्यवस्था करेंगे इससे सबको दर्शन करनेका मौका मिल जायगा । इस बातको सुनकर सब स्त्रियाँ प्रसन्न होकर जाने लगीं । उनमें पारणाके लिये जानेवाली स्त्रियोंको बुलाकर सम्राट्ने कहा