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भरतेश वैभव
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अत्यन्त मधुर स्वरके साथ गा रही हैं । उस समय रात्रिके १२ बजे हैं। इसलिए उस समय के लिए उचित देसि, रामाक्षि, भैरवि, कुरुजिका आदि रागोंके क्रमको जानकर ही वे अत्यन्त मृदुमधुर शब्दोंसे गा रही थीं, जिससे सब लोगोंका आलस्य दूर हो जाय ।। ___ लोकमें और कोई स्त्रियाँ उपवास करें, तो वे उठ ही नहीं सकती हैं । किसी तरह उठनी पड़ती दिन और रात पूरा करती हैं, परन्तु ये रानियाँ इस चातुर्य से आलाप कर रही थीं कि सात बार भोजन किये हुए गायक भी उतना अच्छी तरह नहीं गा सकता था। अर्थात् उन रियाको उपासमा, कोई वास नहीं थः . ६ अत्यन्त उत्साहसे आत्मकार्यमें मग्न हैं।
इस प्रकार उनमेंसे कुछ स्त्रियां साहिल्य और संगीतरसमें मग्न थीं, कुछ जय करनेमें दत्तचित्त थीं, और कुछ जिनसिद्धबिम्बोंको अपने हृदयमें स्थापन कर दाहिने हाथमें जपमालाको सरकाती हुई पंचपरमेष्ठियोंके स्वरूपकी चिंतन करती थीं। कुछ स्त्रियाँ पंचमंत्रका जप कर रही थीं और कुछ अपने चंचलचित्त में निश्चलता लाकर ध्यानका प्रयत्न करने लगी थी। जिस प्रकार भरतेशने ध्यानके लिए आदेश दिया है उसी प्रकार वे निश्चलतासे बैठकर आँखोंको बंद कर, अक्षरास्मक ध्यानको करने लगी हैं, उम ध्यानमें वे कभी कमलासन आदिब्रह्मा भगवान आदिनाथका दर्शन करती हैं, और कभी लोकाग्रवासी सिद्धोका दर्शन करती हैं। इनके ध्यानमें निश्चलता नहीं। एक क्षणमें भगवान का दर्शन होता है, दूसरे क्षण विलय होता है । क्या वह ध्यानतत्व इतना सरल है कि भरतेशके समान सबको अवगत हो जाय ? नहीं।
ध्यान साक्षात् रूपसे पुरुष ही करते हैं, स्त्रियाँ ध्यानकी भावना करती हैं। इधर-उधरके विकल्पोंको हटाकर यदि वे स्त्रियां निश्चल चित्तसे ठहरती हैं, तो वह ध्यान नहीं, अपितु ध्यानका स्मरण है। ध्यानकी भावना है।
इस प्रकार भरतकी सतियां कोई शब्दब्रह्मसे ( स्वाध्याय ) कोई गीतनादब्रह्मसे ( गायन ) और कोई योगनासे ( ध्यान ) उस रात्रिको व्यतीत कर रही थीं। इस प्रकार जब वे स्त्रियाँ ब्रह्मत्रय पूजामें मग्न थीं, उस समय भरतेश अपने निश्चल परब्रह्ममें मग्न थे। कभी वे शुद्धोपयोगमें मग्न होते हैं, तो कभी शुद्धोपयोगके साधनभूत शुभोपयोगका अवलंबन लेते हैं।