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भरतेश वैभव गया था। ज्ञानार्णव, योगरत्नाकर, रत्नरीक्षा, आराधनासार आदि सिद्धांतोंके समान ही उक्त ग्रन्थमें आत्मतत्त्वका प्ररूपण किया गया था । विशेष क्या ? इष्टोपदेश, अष्टसहस्री व कुंदकुंदाचार्यकृत अनु. प्रेक्षा शास्त्रके समान ही आत्माको आह्लादित करनेवाला वह महान् ग्रन्थ था । संक्षेपसे विचार किया जाय तो यह नियमसारके समान था। विस्तारसे वह प्राभृतशास्त्रके समान था ।
भरतेशने उन स्त्रियोंको सिखाया था कि आप लोग इधर-उधरके बहुतसे शास्त्रोंको, जिनसे आत्महित होने की कोई सम्भावना ही न हो, पढ़कर अपना अकल्याण न कर लेब, केवल अपने आत्महितके साधक इस अध्यात्मसारका अध्ययन करें।
लोकमें अगणित शास्त्रोंको पढनेपर भी आत्म-कल्याण करनेकी भावना उत्पन्न न हुई तो उन शास्त्रोंके पढ़नेका क्या प्रयोजन है। इसलिमें ऐतीही शास्त्रीया स्वाध्याय करना वाहिये, जिनस आत्मतत्वकी प्राप्ति हो सके। जो लोग ध्यानके साधक शास्त्रोंका अध्ययन नहीं करते और ख्याति, लाभ व पूजाके लिये अन्य अनेक शास्त्रोंका अध्ययन करते हैं, सचमुच में वे मुर्ख हैं । वे नीच प्रकृतिके हैं, वे कृत्रिम नेत्ररोगसे युक्त रीछके समान हैं । लोकमें उनकी हँसी होती है । ___ सम्पूर्ण शास्त्रोंका सार अध्यात्मचिंतन है और वही निष्कलंक तपश्चर्या है । वही मुक्तिका बीज है इत्यादि अनेक प्रकारसे भरतेशने उनको उपदेश दिया था। इसलिये उन सब बातोंका स्मरण करती हुई अत्यन्त एकाग्रताके साथ वे स्वाध्यायमें दत्तचित्त हो गई है। कोई भी आपसमें इधर-उधर की बात नहीं करती हैं। केवल आध्यात्मिक चर्चा करती हुई ही वे पर्वोपबासी साध्वियां अपने समयको श्यतीत कर रही हैं।
वे रानियाँ भरतेशके द्वारा निर्मित अध्यात्मसारको पढ़ रही हैं । क्या उस पुस्तकमें आत्मा मौजूद है ? नहीं, नहीं, पुस्तक तो यह कहती है कि आत्मा तुम्हारे शरीर में है, तुम अपने ही स्थानमें देखो। ___ वे स्त्रियाँ विचार कर रही हैं कि अभीतक हम लोग बाझमें ही मोहित होकर स्वरूपबाह्य हो रही थीं, हमें अब ग्राह्य अध्यात्म मिल गया है। हमारा अन्न कल्याण होगा।
इस समय उनमेंसे कुछ स्त्रियाँ कई तरहके वाद्योंको लेकर उनके साथ प्राभृत शास्त्रके अर्थीको गाने लगी। कोई कोई बीणाके साथ