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________________ १६६ भरतेश वैभव इसमें आश्चर्य क्या है ? इस प्रकार समझकर अत्यंत शांतभाव से अपनी आत्माका चिंतन कर रहे थे । कर्मकी गति अत्यंत विचित्र है। भरतेशको इससे संतोष हुआ कि सभी रानियां जिनदर्शनके लिये चली गईं। अब मैं अकेला बैठकर अच्छी तरह ध्यान कर सकेंगा, परंतु एकाकी रहनेको पूर्व पुण्य कहाँ छोड़ता है ? स्त्रियोंके चले जानेपर भी व्यंतरदेवियाँ भरतेशकी सेवामें उपस्थित हुईं। सचमुच में उस समयके दृश्यका क्या वर्णन करें ? वह स्वाध्यायमण्डप नवरत्नमय था । उस नवरत्नमय मंदिरमें भरतेश भगवान् के समान मालूम होते थे । अनेक देवियाँ वहाँपर श्री भगवानुकी पूजा व भक्ति कर रही थीं. रात्रिका एक प्रहर बीत गया । भरतेश बाहरके विषयोंसे अपने विकल्पको हटाकर अपनी आत्मामें मग्न थे । अब उनकी रानियाँ मंदिरसे स्वाध्यायमण्डपकी ओर जानेके लिये निकलीं । संध्याकाल में वृद्ध पूजेंद्रके द्वारा की गई पूजाको अत्यंत भक्ति से देखकर श्रद्धांजलिसे त्रिलोकीनाथको नमस्कार करती हुई लोकोद्धारक अपने पतिकी सेवामें वे स्त्रियां अब आ रही हैं । उस दिन उनके साथ में कोई दासी नहीं है। इतना ही नहीं उनके शरीरमें कोई भी आभरण नहीं है । अत्यंत पवित्र तपस्विनियोंके समान वे मालूम होती हैं । प्रतिदिन वे यदि कहीं जाती हैं तो उनके साथ दीपकको ले चलनेवाली दासियाँ भी रहती हैं। परंतु उनके साथ आज कोई दीपकवाली दासी नहीं है। क्या वे स्वतः अपने हाथ में दीपक लेकर बल नहीं सकती हैं ? नहीं! नहीं ! उनको दीपककी आवश्यकता ही नहीं है । बहुमूल्य रत्नजड़ित अंगूठियोंके प्रकाशसे ही वे बराबर मार्गको देख रही थी। यह भी जाने दो। मोती व फ्यराग मणियोंसे निर्मित मंदिरके कलश, परकोटा आदिके रत्नोंकी कांतिसे सहसा भ्रम होजाता था कि कही यह दिन तो नहीं है ? इन सतियोंको दूरसे ही आती हुई देखकर व्यंतर देवियाँ एकदम अदृश्य हो गई । भरतेश ध्यानमं मग्न है, देवताओंने उनकी पूजा की, अब मनुष्यस्त्रियाँ आकर उनकी पूजा करेंगी। वे रानियाँ दूरसे ही खड़ी ही ध्यानस्थ सम्राट्को देखने लगीं। ऐसा प्रतीत होता था कि मेरुपर्वत ही साक्षात् पुरुषके आकार में इस स्वाध्यायमण्डपमें विराजमान है । सोनेकी चौकी के दोनों ओर निर्मित जिन व सिद्धकी मूर्तिसे वह स्वाध्यायशाला शोभित हो रही थी । भृङ्गार, कलश, दर्पण, चामर,
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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