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भरतेश वैमव ललाट प्रदेश में उस वायुके ठहरनेसे प्रमाद एकदम दूर हो गया। जब भरतेशने उस वायुको मस्तकमें ठहराया तब शरीरमें एकदम प्रकाश हो गया। अंधकार दूर हुआ। उस पवनके अभ्यासका का वर्णन करें ? बहु। तीव्र क्षुधा, तृषा आदि एकदम कम हो जाती है। इतना ही नहीं बिषभक्षण कर भी पवनाभ्यासके बलसे उसे जीर्ण कर सकते हैं।
इन सब रहस्योंको सम्राट् अच्छी तरह जानते थे । इसलिये उस राजयोगीने सबसे पहिले पवनसचारको स्तंभितकर आँखको आधी मींचकर नाकके अग्रभागमें धवल बिन्दुको देखा । उस समय उनकी आत्मामें और भी विशुद्धि बढ़ गई। अर्थात् वातसंचारको रोकनेसे अधिक एकाग्रता उत्पन्न हो गई। __अब अच्छी तरह आंख मींचकर भव्यकुलरत्न भरतेशने अपने शरीरमें पंक्तिबद्ध विकमितदल छह कमलोंको देखा । वे कमल ललाट, कण्ठ, हृदय, नाभि, लिंग, पाद इन छह स्थानोंमें थे। कमसे उनके दलकी संख्या सोलह, वारह, दस, छह, पाँच, चार थी। छह कमलोंके पचास दलोंमें सम्राट पचास अक्षरोंकी स्थापना कर अत्यन्त एकाग्रतासे ध्यान करने लगे।
उन्होंने ह क्ष ये दो अक्षर और मोलह स्वर, क से लेकर ठ तक बारह अक्षर एवं पाक्षरसे लेकर लाक्षर तक, द साक्षर व काक्षरको उन दलोंमें स्थापित किया। उन कमलोंकी कणिकामें अहंकार व ओंकारकी कल्पनाकर एकाग्रचित्तसे पदस्थ ध्यानका चितवन किया।
वे भुज, पाद, मस्तक आदि शरीररूपी भुजपत्रयन्त्रमें अनेक अजित मन्त्रोंको लिखकर मनन करने लगे। उन दलोंपर स्थित अक्षर, यह मोतीका माला तो नहीं है, या निर्मल पानीकी बूंदें हैं ? अथवा चाँदनी के बीजकी राशि है ? इस प्रकार विचार उत्पन्न करते थे। ____ अक्षरावलीपर ध्यानको स्थगित कर उसी समय सम्राट्ने भगवान् आदिनाथका दर्शन किया, उस समय भगवान् समवशरणमें विराजमान थे । भरतेश ममवशरण सहित भगवान्का दर्शन अपने शरीरमें ही कर रहे हैं। भगवान् आदिप्रभुके समवशरणमें उनका परमोदारिक दिव्य शरीर, तेजयुक्त देवोंकी पक्ति, दिव्यध्वनि आदि अतिशय भरतेशको साक्षात् दिख रहे थे । उस समवशरणका दर्शन कर उन्होंने भावपूजा की एवं उसी समय सिद्धलोककी ओर अपनी आस्माको भेज दिया । वहाँपर तीन बातवलयोंको स्पर्श न कर केवलज्ञान दर्शन व सुखके हो