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________________ १४६ भरतेश वैभव उस अविनाशी सुखको प्राप्त करनेका क्या उपाय है ? हम लोगोंको उसका मार्ग बतलाइये । सम्राट्ने कला देखि ! कर्मके जालको जो नष्ट करते हैं वे सब सिद्धोंके समान ही सुखी होते हैं । फिर उसने प्रश्न किया कि स्वामिन्! आपने यह तो ठीक कहा परंतु यह बतलाइये कि कर्मको नाश करनेका उपाय क्या है ? इसका मर्म भी हमें जरा समझा दीजिये । देवी ! सुनो ! जिनेंद्र भक्ति सिद्ध भक्ति आदि सत्क्रियाओंसे उस कर्मका नाश किया जा सकता है। विचार करनेपर वह जिनेंद्रभक्ति तथा सिद्धभक्ति भेद व अभेद के रूपसे दो प्रकारकी है। अपने सामने जितेंद्र भगवान् व सिद्धों की प्रतिकृतिको रखकर उपासना करना भेदभक्ति है । अपनी आत्मामें ही उनको विराजमान उपासना करना अभेद भक्ति है 1 विशेष क्या ? पहिले तो भक्तिके ही अभ्यासकी आवश्यकता है। भेदभक्तिका अच्छी तरह अभ्यास होनेके बाद अभेद भक्तिका अभ्यास करें तो कर्मका नाश हो सकता है। कर्मको नाश करनेके लिये अभेदभक्ति पूर्वक आराधनाकी ही परमावश्यकता है । तदनंतर वह विद्यामणि खड़ी होकर पुनः प्रार्थना करने लगी स्वामिन् ! आपकी दयासे हमें भेदभक्तिके स्वरूपका ज्ञान व अभ्यास है । परंतु अभेदभक्तिमें चित्त नहीं लगता है । उस दिव्य भक्तिके विषय में हमें अवश्य समझा दीजिये । देवी ! जिस प्रकार तुम जिनवास ( जिनमंदिर) में सामने भगवान् को रखकर उनकी उपासना करती हो उसी प्रकार तनुवातमें यदि अपनी आत्माको रखकर उपासना करो तो वही अभेदभक्ति है । I यह आत्मा वर्तमान शरीर प्रमाण है । शरीर के भीतर रहनेपर भी उससे अलग है । पुरुषाकाररूप है । चिन्मय है, इसे ऐसा जानकर देखें, तो उसका दर्शन होता है । एक स्फटिककी शुद्ध प्रतिमा जिस प्रकार धूलकी राशि में रखनेपर दिखती है, उसी प्रकार इस देहरूपी धूलकी राशिमें यह शुभ्र आत्मा ढका हुआ है इस प्रकार जानकर उसे देखनेका यदि प्रयत्न करें तो वह अंदर दिखता है । स्फटिककी प्रतिमाको चर्मचक्षुओंसे देख सकते हैं, हाथोंसे स्पर्श कर सकते हैं, परंतु वह कोई विलक्षण मूर्ति है । इसे न चर्मचक्षुसे देख सकते हैं और न हाथसे स्पर्श कर सकते हैं। इसे तो आकाश के रूपमें बनाई हुई स्फटिककी मूर्ति समझो। उसे ज्ञानचक्षुसे ही
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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