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भरतेश वैभव पकड़े भी तो इधर-उधर सरकती हैं ऐसी शुद्ध शक्कर को हाथमे लेकर भरतेधरने बहुत भक्तिसे अभिषेक किया।
इक्षरसाभिषेक-कामदेवको जिनेन्द्र भगवानके सामने लज्जा उत्पन्न हो गई, उसने समझा कि सब इक्षुदण्डमें माधुर्य नहीं है, अतएव उसने इक्षु लाकर भगवान्के सामने डाल दिया है एवं लोकको कह रहा है कि माचमुच में इस कामसे बनमें कोई सुख नहीं है। आप सब श्री त्रिलोकीनाथ श्री भगवानकी सेवा करें। इस भावको बतलाते हुए सम्राट् इक्षुरसका अभिषेक कर रहे हैं।
आम्ररसाभिषेक-सम्राट अगणित घड़ोंमें भर भर कर जिस समय उत्तम जातिके आम्ररससे अभिषेक कर रहे थे उस समय ऐसा मालम होता था कि कहीं इस प्रतिमाको दोरंगवाला परिधान तो नहीं धारण कराया गया है। __ यह कल्पना पसन्द नहीं आई, जाने दो, जिस समय भरतेश्वरने उम काकम्बी (फल जाति विशेष) के रससे अभिषेक किया उस समय वह सुवर्णकी मूर्ति ही हो गई। - घृताभिषेक--संभवतः ठण्डे सोने के शुद्ध रसको ही ये धाराप्रवाह रूपसे छोड़ रहे हैं, इस प्रकारके भावको प्रकट करते हुये सम्राट् शुद्ध गोघृतका अभिषेक कर रहे थे।
जिस समय उन्होंने घृताभिषेक किया उस समय ऐसा मालूम होता था मानों कोई सोनेकी नदी बह रही हो।
बुग्धाभिषेक-कहीं आकाशसे क्षीर समुद्र तो नहीं आया, नहीं तो इतना दूध कहाँसे आया ? इस प्रकार लोग बातचीत कर रहे थे । भरतेश अगणित कुंभोंमें भर-भरकर दूधका अभिषेक कर रहे थे। बड़े बड़े कुंभोंको दीर्घ बाहुओंसे उठाकर जिस समय अभिषेक करते थे उस समय 'बुडबुद्ध", "भुल्ल भुल्ल'' इस प्रकारके शब्द हो रहे थे ।
वधिअभिषेक--नारियलकी गरीके समान शुभ्रदधिसे सम्राट्ने अत्यन्त भक्तिसे अभिषेक किया। क्षीर समुद्र में ही दही डालकर और दही जमाकर लाये या दधिवर समुद्रको ही यहाँपर उठाकर लाये, अहा ! हा! कितना अच्छा हुआ ! इस प्रकार सम्राटके वैभवकी प्रशंसा उस समय हो रही थी।
इस प्रकार सम्राट्ने पंचामृतके असंख्य कुंभोंसे अभिषेक किया। मुनिगण अभिषेकको देखकर जयजयकार शब्द कर रहे हैं। देखनेवालोंको