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________________ भरतेश देव १३७ तदनंतर उन तपोधनोंसे प्रार्थना की कि स्वामिन् ! महाभिषेक व पूजाके दर्शनार्थ पधारिये । उनकी सम्मति पाकर सम्राट् वहाँसे रवाना हुए। श्री भगवान् आदिनाथके मन्दिर में जाकर महाभिषेक प्रारंभ किया। अभिषेक करनेवाले आद्य महापुरुष सम्राट भरत हैं। अभिषेक करने योग्य प्रतिमा भगवान् आदिप्रभुकी है। ऐसी अवस्थामें उस अभिषेकका वर्णन क्या करें ? वह जिनमंदिर चतुर्मखी था, यह पहिले ही कह चुके हैं ? अतः भरतेशने भी चार रूपधारण कर लिये और वे अत्यन्त भक्तिसे अभिषेक करने लगे। बाहरसे अनेक तरहके बाद्यघोष होने लगे। चारों दरवाजोंमें योगिगण, अजिंकायें, श्रावक, श्राविका व रानियाँ अभिषेकको देख रही हैं एवं जयजयकार शब्द कर रही हैं। मुर्ति पांच सौ धनुष ऊँची है एवं अभिषेक करनेवाले मम्राट ब उनकी साम्राजियां भी पांचसौ धनुष ऊंची हैं। अव पाठक स्वयं अनुमान करें कि उस अभिषेकमें कितना आनंद आया होगा। अत्यन्त विशाल शरीर होनेपर भी सम्राट्का शरीर विकृात नहीं मालम होता था। उसकी लम्बाई, मोटाई, ऊँचाई आदि यथावस्थित होनेसे सर्व-अंग अच्छी तरह शोभा दे रहे थे । उस दीर्घ मन्दिरमें दीर्घदेही भरतने दीर्घ प्रतिमाका जिस दीर्घ वैमनसे अभिषेक किया उस महत्ताको श्री आदिभगवान ही जानें । ___ जलाभिषेक - जैसे आकाझमें बादलोंके फूटनेसे निर्मल जलबर्षा मेरु पर्वतके ऊपर होती है उसी प्रकार श्री भगवान् आदिनाथका सम्राट्ने अनेक कुंभोंसे भरकर निर्मल जलाभिषेक किया । ___ नालिकेरसाभिषेक--मानों आकाश गंगाके पानीको हरे रत्नोंसे निर्मित घड़ोंमें भरकर स्नान करा रहे हों इस प्रकार कच्चे नारियल के पानीसे भगवान्का अभिषेक किया। तदनन्तर नारियल की गरीमे श्री भगवन्तका अभिषेक किया बह ऐसा मालम होता था मानों आकाशममुद्रके फेन सबके सब इकट्ठे होकर सम्राट्के हाथमें आन पड़े हों। कदलीफलाभिषेक यह क्या है ? ताड़के फूल तो नहीं हैं ? ऐसा भ्रम उत्पन्न करते हुये भरतेश केलेके फलसे अभिषेक कर रहे थे। शर्कराभिषेक--अच्छी तरह हाथमें पकड़ने में भी नहीं आती और
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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