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________________ भरतेश वैभव १३९. मालूम होता है कि शायद आकाशमें अमृतका समुद्र तो नहीं है। असंख्य घड़ोंसे जिस समय उन्होंने अभिषेक किया उस समय मंदिरकी जमीन व पाया घलकर बह जाता. परंत वह वनानिमित मा। अतः कुछ नहीं हो सका। सामग्री पहाड़के समान एकत्रित हो रही है। उसे परिवार की स्त्रियाँ उठा-उठाकर ले जा रही हैं। कितनी ही रानियों मम्राटको अभिषेकके लिये सामग्री उठाकर देती हैं। कोई-कोई आरती उतारती हैं। कोई जयजयकार शब्द कर रही हैं। वे स्त्रियों वड़-बड़ अमृत घड़ों को उठाकर राजाको सौंपती हैं, बहुत बड़े बड़े हों तो कई मिल कर उठाती हैं। मम्राट् विचारते हैं कि इनको इस कुंभको उठाने में बड़ा कष्ट होता है। उसी समय वे अपने अनेक रूप बनाकर उन स्त्रियोंके बीच में खड़े होकर उनको उठाने में सहायता करते हैं । कभी-कभी अपने आप अनेक रूपोंसे उठाते हुए उन स्त्रियोंसे कहते हैं कि आप लोग अभिषेक देखती हुई खड़ी रहें । भगवानकी स्तुति करें। मैं सब करता हूँ। ऐसा कहकर स्वयं अभिषेक करते थे| . भरतेशको किस बातकी कमी है ? इच्छा करनेकी देरी है। जब इच्छा करें उसी समय उनके हाथमें अमृतके धड़े आ जाते हैं, फिर अत्यन्त भक्तिसे वे अभिषेक करते जायें इसमें आश्चर्य क्या है ? चांदी, सोना व रत्नोंसे निर्मित घड़ोंमें भरे हुए अमृतसे जिम समय वे अभिषेक कर रहे थे उस समय ऐसा मालूम होता था कि सम्राट अनेक वर्णकी गेंदोंसे खेल रहे हैं। कुम्भोंको उठानेका क्रम, सावधान व भक्तिसे भगवानके अभिषेक करनेकी रीति, गांभीर्ययुक्त गति आदिसे सम्राट उस समय देवेन्द्रको भी तिरस्कृत कर रहे थे । भरतेश जिस रसोई घरमें भोजन करते थे वहाँपर भोजनके लिए उनम जातिकी तीन करोड़ गायोंका दूध लाया जाता था । ऐसी अवस्था में आज भरतेश्वरने एक करोड़ दूधके कलशोंसे अभिषेक किया इसमें आश्चर्यकी बात क्या है ? उस मंदिरके निर्माणमें नीचेसे दूध-दही जानेके लिए मार्ग रखा गया था। नहीं तो भरतेशने जो अभिषेक किया उससे उस समय दूध-दहीसे ही बह मंदिर डूब जाता। पाण्डुकनिधिका कार्य ही यह है कि वह इच्छित रसोंको देवें, इसी अवस्थामें चक्रवर्तीने वहाँपर घीकी नदी बहाई व शक्करका पहाड़ ही लगा दिया इसमें आश्चर्य ही क्या है ?
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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