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भरतेश वैभव सामग्री आनेवाली है। फिर भी प्रभुके दरबारमें खाली हाथसे जाना शिष्टाचार नहीं है, इस विचारसे उन्होंने एक-एक फल अपने हाथमें ले लिया था।
चारों ओरसे रानियाँ जा रही हैं। वीचमें सम्राट जा रहे हैं। उनके हाथमें मातुलिंगका फल है। इधर-उधरसे बहुतसी स्त्रियाँ आध्यात्मिक गान गाती हुई जा रही हैं। अनेक परिवारकी स्त्रियाँ तरह तरहकी पूजा सामग्रीको लेकर सम्राट के पीछेसे चल रही हैं। दोनों ओर गायन व आगे शंखध्वनि सहित बहुत वैभव के साथ सम्राट जा रहे हैं। ___ राजमहलके पासमें ही उद्यान वनके तीचमें भगवान श्री आदि प्रभुका मन्दिर है । वहींपर जाकर चक्रवर्ती जिनयज्ञ-क्रिया करते हैं।
बाह्य परकोटेके बाहर उन्होंने खड़ाऊ उतारवार भीतर प्रवेश किया। सबसे पहिले मानस्तंभकी प्रदक्षिणा कर अपनी पवित्र देवियोंके साथ-साथ आकाशचुंबित और सुवर्णसे निर्मित तीन परकोटोको पार किया और जिनेन्द्रमन्दिरका दर्शन किया।
उस जिनेन्द्र मन्दिरके सौदर्यका क्या वर्णन करें ? भरतेश्वरके रहनेका महल सुवर्ण व रत्नोंसे निर्मित है । उन्होंने अपने स्वामी आदिप्रभुके मन्दिरको भी रत्न व सुवर्णसे अपने महलसे भी अधिक सुन्दर . बनाया है, यह कह्नकी क्या आवश्यकता है?
राजमन्दिरको निर्माण करनेवाला सुरशिल्पी क्या जिनमन्दिरका निर्माण नहीं कर सकता है ? उसका वर्णन इस लेखनीसे नहीं हो सकता, उसे कल्पविमान कह सकते हैं अथवा कहीं वह मन्दराचल तो नहीं है ? समवशरण तो नहीं? नहीं नहीं। वह तो मर्वार्थसिद्धि विमानके समान है, अथवा अनेक सुवर्णरत्नोंसे निर्मित सुन्दर पर्वत है । ___अच्छा रहने दो ! हमारे मनमें तो एक दूसरी कल्पना आती है कि वह जिनमन्दिर जिनेन्द्र भगवान्के पंचकल्याणको अच्छी तरह सूचित कर रहा था। उसके ऊपर लगे हुए मोती व माणिक्यके कलशोंका प्रकाश इस प्रकार फैल रहा था, मानों वे साक्षात् सूर्य-चन्द्रको स्पष्ट कर रहे हैं कि तुम्हारी इधर आवश्यकता नहीं है, तुम लोग उधर ही रहो । हम यहाँपर अच्छी तरह प्रकाश कर रहे हैं ।
ध्वजा-पताकाओंके हिलते समय ऐसा मालूम होता है कि वे आकाशसे देवोंको जिनदर्शन के लिये बुला रही हों। इतना ही नहीं,