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भरतेश वैभव अनेक रत्नमयघंटा सुन्दर शब्दो द्वारा उन देवोंको उच्चध्वान कर इधर आकर्षित कर रहे हैं।
स्थान-स्थान पर अनेक शासन-देवताओंकी पुतलियां खड़ी हैं। उनको देखनेपर मालम होता है कि वे हंस रही हैं या बोलनेके लिये आतुर हैं या किसीकी ओर उत्माहके साथ देख रही हैं। ___ जिनेन्द्रदेव ब सिद्धोंकी मूर्तियाँ बहुत जगमगाहटके माथ शोभित हो रही हैं। उनमें गांतिरस ओतप्रोत भरा हुआ है।
समवशरणमें भगवान आदिनाथ स्वामी चतर्मस्त्र होकर बिराजमान हैं । उसी प्रकारकी इस मन्दिरमें भगवान्की चतुर्मुख प्रतिकृति (मूर्ति) है। मालम होता है कि यह साक्षात समवशरण ही है और उसके समान ही अत्यन्त सुन्दर है।
समस्त सम्पत्तियोंके आधारभूत पवित्र जिनमन्दिरको सम्राट्ने निष्कलंक चारित्रको धारण करनेवाली अपनी रानियोंके साथ त्रिकरणशुद्धिपूर्वक हाथ जोड़कर तीन प्रदक्षिणा दी ।
तदनंतर अपने चरणोंको धोकर भीतर प्रवेश किया और समक्ष विराजमान श्री आदिनाथ भगवानकी मूर्तिका दर्शन किया। उनने सबसे पहिले दृष्टिसे दर्शनांजलि की, पश्चात् सुवर्णपुष्पको समर्पण कर वे हाथ जोड़कर खड़े हुए एवं श्री भगवानकी स्तुति करने लगे।
केवलज्ञानरूपी महाराज्यके स्वामी देवाधिदेव श्री भगवान् आदिनाथ प्रभुकी प्रतिकृतिकी जय हो। मुक्तिके अधिपति, सिद्धांतके प्रतिपादक, इच्छितसिद्धिदायक मेरे स्वामीकी प्रतिमाकी जय हो !
कोटि सूर्य व कोटि चंद्रके प्रकाशको धारण करनेवाले, तीन लोक. के राजाओंके राजा, चिन्मय मेरे पिताकी प्रतिकृतिकी जय हो !
इत्यादि अनेक प्रकारसे स्तुतिकर सबने अत्यन्त भक्तिसे साष्टांग नमस्कार किया। उस समय भरतका शरीर उस मंदिरमें था परन्तु चित्त वहाँपर नहीं था। चित्त तो कैलास पर्वतमें जाकर भगवान् आदिनाथ स्वामीका साक्षात् दर्शन कर रहा था । यही यथार्थ भक्ति है।
तदनंतर सम्राट् दर्भासनपर विराजमान हो गये तथा संपूर्ण आद्यक्रियाओंको करके उन्होंने जनशासन देवताओंको अर्घ्य प्रदान
स्सुतिके बाद जप किया । तदनंतर आँख मींचकर आत्मामें भगवान् आदिनाथको स्थापन किया । अब उनको शरीरके अन्दर ही भगवान् साक्षात् दिख रहे हैं । या यों कहिये कि भरतके आत्मप्रदेशों में भगवान्के
किया।