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________________ भरतेश वैभव अथ पर्वाभिषेक संधि आज पर्वका दिन है। सम्राट् जिन मंदिरमें जाकर बहुत वैभवके साथ जिनाभिषेक करेंगे । १३२ सम्राट्के चातुर्यका कौन वर्णन कर सकता है ? यद्यपि वे अत्यंत पवित्र देहको धारण करनेवाले हैं। उनके लिये बाहर की है, नीहार नहीं है। फिर भी उन्होंने विचार किया कि मैं बहुत समय से अपनी पनियों के साथ था । इसलिये पूजनसे पहिले एक दफे स्नान अवश्य कर लेना चाहिये। इस विचारसे वे पूजनके पूर्व स्नानगृहकी ओर चले | भरतेश दो प्रकारका स्नान किया करते थे । एक भोगस्नान दूसरा योगस्नान । शरीरको निर्मल तथा सुन्दर बनानेके लिये अर्थात् भोगके प्रयोजनसे स्नान करना भोगस्नान है। देवपूजा, ध्यान, पात्रदान आदिके लिये स्नान करना वह योगस्नान है । भोगस्नान के लिये मालिश करनेकी आवश्यकता होती है। तेल, अंगराग व अन्य सुगंध द्रव्योंकी भी आवश्यकता रहती है। पानी भी अधिक लगता है । अतएव उसमें समय भी अधिक लगता है। परंतु योगस्नान के लिये इन सब बातोंकी आवश्यकता नहीं होती है इसलिये वह बहुत शीघ्र हो जाता है। सम्राट् प्रतिदिन स्नान किया करते थे । एक दिन योगस्तान, दूसरे दिन भोगस्नान इसी क्रमसे स्नान होता था । त्रे प्रतिनित्य स्नान किया करते थे । आज पर्वका दिन होने से उन्होंने भोगस्नान नहीं किया। क्योंकि आज उन्हें भोगसे कोई प्रयोजन ही नहीं है । बहुत जल्दी स्नान गृहमें प्रवेश कर उन्होंने योगस्नान किया । तदनंतर वहाँसे शृङ्गारशालाकी ओर चले । शृङ्गारशाला में प्रवेश कर उन्होंने अपने शरीरका शृङ्गार किया । शृङ्गार भी उनका दो प्रकार से होता था । एक मोहन शृङ्गार, दूसरा मोक्ष शृङ्गार | अपनी स्त्रियोंको प्रसन्न करनेवाले वस्त्र व आभूषणोंसे अपने शरीरको सुसज्जित करना मोहनशृङ्गार है। मोहरहित मोहालक्ष्मीको प्रसन्न करनेवाले जिनपूजाके योग्य वस्त्र आभूषणोंसे शरीरको सुसज्जित करना मोक्ष शृङ्गार है। क्योंकि जिनपूजा मोक्षांग क्रिया है । उस समय चटकमटकरहित निर्मोह अलंकारोंकी ही प्रधानता रहनी चाहिये ।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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