SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भरतेश वैभव १३१ हैं । हे राजयोगीन्द्र ! निज मन्दिरसे जिनमंदिरकी ओर प्रस्थान कीजिये । I इस प्रकार गानेवाली उन गायिकाओंके सुख गीतको सुनकर विभिन्न महलमें स्थित अपने विभिन्न रूपको एकत्रित कर लिया । और भरतेश मूलरूपमें आये, प्रत्येक पलंगपर सोये हुए भरतेश अब अदृष्य हो गये, इसे देखकर वे स्त्रियाँ भी आश्चर्यचकित होकर उठकर बैठी हैं एवं अपनी नित्यक्रियामें लग गई हैं । भावदृष्टिसे परमात्मा की भाववन्दना कर भरतेश्वरने भी बीतराग पदका उच्चारण करते हुए नेत्रोंको खोला । प्रातःकालमें उठकर सर्वप्रथम खड्ग, दर्पण, घी आदिका दर्शन करना कोई शुभ मानते हैं । परन्तु भरतेश्वर प्रातः काल में परमात्मदर्शनको परमशुभ मानते हैं । सुप्रभातको सुनकर वह पद्मिनी भी उठकर बैठी हुई थी, भरतेश्वर ने कहा कि हे प्रिये ! मैं आगे होता हैं, तुम जिनमन्दिरको बादमें आना, यह कहते हुए तत्काल बहाँसे उठे । उन अन्तःपुरके शय्यागृहको छोड़कर अब भरतेश्वर बाहर आये हैं । सूर्य उदयाचलपर आया है। गुणनिधि राजसूर्य भरतेश्वर उदयाचलपर स्थित उस सूर्य को देखकर आगे बढ़े । हमारे प्रिय वाचकोंको आश्चर्य होगा कि ऐसे श्रृंगार विलास भोगमें रत भरत आत्म वैभवमें भी रत होते हैं, यह विषय सम्भवनीय हो सकता है क्या ? उनके अन्दर भोगरोगादिकोंकी वामना दूर कर आत्म समृद्धि करनेकी साधना कैसे आ सकती है, यह प्रश्न वास्तवमें विचारणीय है । परन्तु उन्होंने अनेक जन्मोंसे जो साधना की है उसका ही यह फल है, इसे भुलना नहीं होगा। वे सतत आत्मचिन्तन इम प्रकार करते हैं कि हे मोक्षरसिक चिदंवरपुरुष ! क्षुधा, तृषा, निद्रा आदि दुःखोंको दूर करने की सामर्थ्य तुझमें है। तुम्हारा वैभव अतुल है । तुम मेरे अन्तरंग में सदा निवास करते हो । हे निरंजनसिद्ध सिद्धात्मन् ! आँख बन्द कर आत्मदर्शन करनेपर आत्मसुखको प्रदान करनेवाले आप परमानन्दस्वरूपी हैं। इसलिए हे पुण्यनुरुषाधिपति ! सदा मुझे सन्मति प्रदान कीजिये । इति शय्यागृह सन्धि
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy