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________________ १२० भरतेश वैभव भरतेश्वर .. सुप्पाणी, पुष्पाणी और कट्टाणी तुम तीनों जाओ। उन्हें समझाकर ले आओ। वे तीनों गई। उनको भी समझाकर उन दोनों रानियोंने वापिस कर दी। चूडाणि, मकराणी, मुकराणी, मधुराणी, चंद्राणी, द्राणी, आदि अनेक रानियाँ गई। नाना प्रकारसे समझाकर कहा । पर सब व्यर्थ । उन रानियों को इन दोनोंका स्त्रोहर देखकर दुःख व क्रोध उत्पन्न हुआ। कहने लगी कि इतना अहंकार बढ़ गया है। हम सबने कहा। मूनती नहीं । पतिदेवकी कीमत नहीं 1 पतिदेवके सामने थोड़ीसी गम्भीरता रखना आवश्यक है ! नहीं तो हम दिखा देतीं कि हम क्या कर सकती हैं ? इतनेमें इन सबके मनको समझकर रूपाणी मामने आई व सकी प्रेरणासे पतिदेवके चरणोंमें नमस्कार किया, उसी समय भरलेश्वरने उसे पकड़ लिया, व कहने लगे कि देवी ! वास्तवमें तुम्हें दुःख हुआ है, अब उस दुःख को दूर करता हूँ। यह कहते हुए उसे आलिंगन दिया, उसे राजाकी इस वृत्तिसे बड़ी प्रसन्नता हुई तथापि किसी तरह उसके बाहुपाशसे छुड़ाकर पास में ही खड़ी रही। रूपाणी आई,पद्मिनी आई नहीं, इसलिये सबने उसे बुलाने का आग्रह किया, बस करो तुम्हारा क्रोध । अब सामने आ जाओ ! सबने आग्रह किया। __ पद्मिनी आप सब लोगोंने मुझे दोष देनेका विचार किया मालम होता है, पतिदेवके दोषोंका आप लोग समर्थन कर रही हैं। सब लोग मिलकर मेरी अकेलीपर दोषारोपण कर रही हैं। तुम लोगों पर मेरा बड़ा विश्वास था, परन्तु तुम लोग पतिका पक्ष ले रही हो, अच्छा हुआ, समुद्रको न दबाकर समुद्रसे पानी लेनेवाले एक घड़को तुम दबा रही हो। राजेश्वरको न दाबते हुए मुझं दाबनेकी पद्धति आप लोगों की है, वाह ! ठीक है। भरतेश ममझ गये कि इसे प्रणयकलहकी इच्छा हुई है, इसलिए इसी मार्गस इसे वश में करना चाहिये, देवियों ! तुम ठहरो, मैं इसको समझाऊँगा। बाकी स्त्रियोंने सबको शांत रहने का संकेत किया, उसे राजाके साथ वाद करनेकी इच्छा दिग्वती है, हमें क्या ? हम स्वस्थ रहकर उनके वाग्वादको देखेंगी ऐसा सब रानियोंने निश्चय किया। इस प्रकार जब सब स्त्रियोंने मौन धारण किया तो भरतेश आगे
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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