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भरतेश यमय आये उन्होंने पधिनीके मानसिक प्रवृत्तिका विचार किया, स्त्रियोंमें अनेक भेद हैं। बाला, विदग्धा, मुग्धा आदि अनेक भेदोंमें यह नहीं आती है, यह मध्यमा है। इसके अन्तरंग बहत गूढ हैं, लीलाचातुर्य है, वचनकोशल्य है, अनुभवविलास है, जातिसे पविनी है, नाम भी पधिनी है, कामशक्तिकी तीव्रता इसमें कितनी है यह भी उन्होंने जान लिया। किसी भी उपायसे इसे वशकर नमस्कार कर लेना जरूरी है। इस प्रकार विचार कर भरतेश बोलने लगे कि पद्मिनी ! इस प्रकार हठ करना ठीक नहीं है। तुम्हारी मैत्रिणीने जब आकर क्षमा मांग ली तो तुम्हारी इस प्रकारकी वृत्ति उचित नहीं है। ____ अहो ! रूपाणी निर्लज्ज होकर तुम्हारे पास आई व उसने तुम्हें नमस्कार किया तो क्या हुआ, क्या मैं कोई सामान्य स्त्री हूँ ? पश्मिनीके महत्वको आपने अभीतक नहीं देखा क्या ? इस प्रकार जरा गर्वपूर्ण वचनसे बह बोलने लगी राजन् ! अच्छी बातके लिए दस बार नमकार विया जा सकता था, क्षमा भी मांगी जा सकती है । परन्तु कोई गलती न होते हए किसलिए नमस्कार करूँ? इसलिये मैं अपने निर्धार से नीचे आने वाली नहीं हूँ।
भरतेश्वर-तुम्हारे अन्दर उतना मनोधैर्य हैं क्या? मेरी तरफ जरा देख करके बोलो, भ्रष्ट लोगोंके समान नीचे देखकर क्यों बोलती हो ? तुम्हारे अन्दर अतुल धैर्य होनेपर घबरानेकी आवश्यकता क्या है ?
भरतेश्वरके बचनको सूनकर पद्मिनी विचार करने लगी कि उनके मुखको देखें तो बिगड़ेगा ? देखें तो सही, इस प्रकार भरतेश्वरके प्रति सरल प्टिसे देखने लगी तो मनके सर्व दुःख दूर हए । ओष्ठमें हास्य रेखा आई, हेमते-हँसते ही नीचे देखने लगी, मनमें आनन्दित हो रही है। परन्तु सबके समक्ष अपनी गलती स्वीकार कर क्षमा मांगनेका धैर्य नहीं है। संकोच मालूम होता है।
उसके निमित्तसे नाना प्रकारके बाद चाल हैं, परन्तु वह आगे सरक नहीं रही है । भरतेश उपायसे काहने लगे कि पद्मिनी ! अब तुम वहाँ ठहरी तो तुम्हें मेरी शपथ है 1 आगे आओ, मेरे पास आओ, रसिकसनाटने शपथ पूर्वक कहा । शपथ डालनेपर दस पर आगे बढ़कर वह आई परन्तु सामने नहीं देखबार नीचे मुख कर खड़ी हो गई, बुद्धि चातुर्यसे न जीतकर मुझे अब सौगन्ध खाकर बुला रहे हैं, अब क्या करूँ, वह मनमें सोचने लगी है।
इतनेमें भरतेश कहने लगे कि पधिनी! यदि तुम वहीं ठहर गई