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भरतेश वैभव
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पुरुषोंके सामने भी अपने गोपनीय अंगोंको ढककर ही स्त्रियोंको नृत्य करना चाहिये । परपुरुषोंके सामने किस प्रकार नृत्य करें इसे कहनेकी क्या आवश्यकता है ? उसमें भी राजन् ! आप बड़े बुद्धिमान हैं । आपके मन्त्री विवेकी हैं। इन बातोंका विचार कर हमने बहुत सावधानतासे व्यवहार किया। . भरतेश्वर कहने लगे कि देवियों ! तुमने अच्छा कहा व अच्छा किया, तुम्हारी कलासे मैं बहुत ही प्रसन्न हो गया हूँ। इसलिये तुम्हें क्या चाहिये सो कहो, मैं सब कुछ देनेको तैयार हूँ।
स्वामिन् ! हमें कुछ भी नहीं चाहिये, हमारे पास सबकुछ है । सर्व सौभाग्य है । उसे पूछो, इसे पूछो, यह कहती हुई सब १६ पात्रोंकी ओर देखने लगीं तब मालम हआ कि उनमें दो स्त्रियाँ कम हैं, रूपाणी और पद्मिनी वहाँपर नहीं हैं, वे दोनों नाराज होकर सूबेनेगी बनी है, नाराज होनेका और कोई कारण नहीं है, परन्तु जिस समय वे दोनों नृत्य कर रही थीं उस समय भरतेश्वरने अपने मुखको कोई कारणसे अन्यत्र फेर लिया था, उससे ये दोनों नाराज हो गई।
भरतेश्वरने उन्हें देखकर अन्दाज किया कि ये नाराज हो गई हैं। इन्हें मेरी तरफसे क्या कष्ट हुआ ? अथवा मेरी अन्य स्त्रियोंने इनके प्रति कोई अपराध किया ? उनको मेरी तरफ बुलाओ, मैं समझता हूँ। उन्हें बुलानेके लिए दासियाँ गईं, आपको स्वामीने बुलाया है, यह उनसे कहा गया।
जाओ, जाओ ! तुम्हारे मालिकको हमारी नृत्यकला पसन्द नहीं आयी, जिनकी कला पसन्द पड़ी हो उन्हें बुलानेके लिए कहो, हमें बुलाने की क्या आवश्यकता है ? उन दोनों देवियोंने भरतेश्वर पर्यन्त आवाज जावे इस स्वरसे काहा । पुनः कहने लगी कि हम जिस समय नृत्य कर रही थीं उस समय वे मन्त्रीकी दाढीकी ओर देख रहे थे, और उन्हें जो प्रिय स्त्रियां थीं, वे जिस समय नाच रही थीं, उस समय उन्हीं की ओर देख रहे थे, हम गरीब पात्र हैं, यह जानकर उनकी दृष्टि श्रीमन्त पात्रोंकी ओर गई थी, अब हमें बनानेके लिये बुला रहे हैं । हमें जो दुःख हुआ है उसे तुम दासियोंके सामने बोलकर क्या उपयोग है ? जाओ, हम नहीं आयेंगी, जाकर उनसे कहो, भरतेश्वरके कानमें वे शब्द पड़ रहे थे।
ओहो ! मेरी ओरसे इनको कष्ट है। अब इनको समझाना जरूरी