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________________ ११६ भरतेश वैभव हे सिद्धात्मन् ! तुम्हारे अंतरंगको जाननेके क्रमको जानकर आत्मदृष्टिसे तुम्हें देखा जाय तो प्रकाशज कायसे तुम दर्शन देते हो । इसी प्रकार व्यक्त होकर मुझे सदा सद्बुद्धि प्रदान करो। इति उत्सरनाटक संघि अथ तांडवविनय संधि बाहरके अन्य लोग जब वहाँसे निकल गये तब भरतेश्वरके पीछेका परदा सरकाया गया। अब सर्व रानियाँ सामने दिखने लगी और उन्हीं में १६ स्त्री पात्र रानियां भी थीं । भरतेश्वरने उनकी ओर देखकर कहा कि परदेके अंदर बैठकर अभीतक उपसर्ग हुआ होगा ? तब रानियोंने काहा कि स्वामिन् ! हमें स्वर्ग मिल गया था। वहाँ उपसर्ग कहाँसे आवे? हमें स्वप्नमें भी उपसर्ग नहीं है। आपका संसर्ग किसे सूख नहीं देगा ? व्याकरणमें उपसर्ग पद वकाररहित है। अगर उसमें वकार जोड़ दिया जाए तो उपस्वर्ग बन जाता है। हमें तो सचमुच में उपस्वर्ग हो गया है । आपके बोलने में वह वकार रह गया होगा। उन स्त्रीपात्रों के अनेक प्रकारके नपुण्यको देखकर हम लोग आनंदित हुई हैं। आप ही देखिये, हम लोग स्वर्गके पासमें बैठे नहीं क्या ? पात्र -स्त्रियाँ थक गई हैं। उनको बुलाकर प्रसन्न कीजिये । इम प्रकार संकेत पाकर भरतेशने उन्हें बुलाया। सभी पात्र-स्त्रियां सामने आई । उनकी भरतेशने बड़ी प्रशंसा की। शाबाश ! बहुत उत्तम नाटक कर बताया । भगवान् आदिनाथकी शपथ ! बहुत सुन्दर हुआ। बुद्धिसागर मंत्री थे इसलिए नाटक में शोभा आई । सबके आनंदमें समृद्धि हुई। __स्वामिन् ! बुद्धिसागर मंत्री वास्तबमें बुद्धिमान हैं, चतुर हैं, वृद्ध हैं। उनकी उपस्थितिसे जरा संकोच जरूर मालूम होता था। तथापि हमने अपनी कुशलतासे ही सर्व कलाओंका प्रदर्शन किया । बहुत गंभीर बनाया नहीं । अन्य लोगोंके सामने कुलवधुओंको नृत्य करने में संकोच होना साहजिक है। आप अकेले रहते तो हमें निस्संकोच होकर नृत्य करने में अनुकूलता होती । आज मंत्री सामने थे, इसलिए थोड़ा विचार आया। स्वतःके
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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