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। २० ) हमारे हथेलीमें आ बैठा हो । अध्यात्म विधारका वर्णन करते समय कविने वस्तुतः पूर्ण प्रावीण्यका दिग्दर्शन किया है। यह विषय इसे अभ्यस्त होने के कारण इतने सरस ढंगसे उसका वर्णन किया है इसमें संदेह नहीं।
ररा-रस भी काव्यका एक अंग है। प्रसंगानुसार रसोंका सम्मिश्रणकर पाठकोंको हर्ष विषादादिमें डालना यह कविक बुद्धिचातुर्यपर निर्भर है । रत्नाकरकी रचनाओंसे उसे शृंगार कवि हंसराज की उपाधि प्राप्त की। शृंगार विषयके वर्णनमें भी उसने अपने अप्रतिम कौशलको बप्तलाया है। जिस प्रकार भरसने कई जगह इस बातका अनुभव कराया है कि आत्मविशानी के लिये दुनिया में कोई बात अशक्य नाही, याकोको लौकिक बाते उसे सरलतास प्राप्त हो सकती है, इसी प्रकार अध्यात्मरसमें अधिकार प्राप्त कविने यह बतलाया है कि अध्यात्मरसके प्राप्त होने के बाद बाकीके रसोंका वर्णन करना बोये हायका खेल है। इसलिए कविने काव्यमें प्रसंग पाकर श्रृंगार रसको ओत-प्रोत भर दिया है। चाहे कुछ स्थलोंमें वह मर्यादातीत होनेका अनुभव भले ही करे, फिर भी अध्यात्मरसके बीसमें आ जानेसे एवं काव्य का मुख्य अंग होनेसे कोई बेढब नहीं हआ। ___भरतेशको कुमारवियोगका जिस समय समाचार मिला उस समय जो दुःख हुआ उसका वर्णन करते समय कविने करुणारससे पाठकों के चित्तको गोला कर दिया है । उसे बोचते समय पत्थर भी पानी हुए बिना नहीं रह सकता ।
__ भरतका रानियोंके साथ सरसालाप व विदूषकका प्रासंगिक विनोद, काव्यमें हास्यरसको यत्र-सत्र श्यक्त करता है। ऐसे स्थानोंके अध्ययनसे उदासीन पाठकों के हृदयमें भी उल्लासका छा जाना साहजिक है । करिने जहाँ अध्यात्मविषयका वर्णन किया है वापर शांतरस अच्छी तरह टपकता है। जहाँपर वैराग्यभावका वर्णन किया है वहां आस्तिकवादी हुदयमें विरक्ति परिणाम उत्पन्न किये बिना नहीं रह सकता । सचमुचमें यही कविका असाधारण प्रभाव व सामध्यं करना चाहिये कि उसकी रमनामें चित्रित विषयोंका प्रभाव अविलंबसे वापकोंके हृदयपर हो जाप । यह खूबी इस कविके काव्यमें नैसर्गिक वर्णनोंके आधिक्य होनेसे खुब ही पाई जाती है। प्रत्येक विषयमें निष्णात होनेके कारण जिस विषयका भी वर्णन करने के लिए मैठे उसे सांगोपांग इस प्रकार वर्णन करता है कि जिससे पाठकोंको उसके अध्ययनमें स्वाद आये बिना न रहे ।
कविताका तत्त्वज्ञान--कवि अभिमानपूर्वक पहिसेसे कहा है इस काम्पक द्वारा भोगी और योगी दोनोंके हृदयको मैं आकर्षित करूंगा। इसी प्रकार उसे उसमें सफलता भी मिली । तत्त्वज्ञानका बोध पाठकोंको हो इस इच्छासे श्री भगबतके मुखसे एवं भरतेशसे उसका उपदेश दिलाया गया है। भरतेश बैभपके नाम