SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्णनाक्रम कविने प्रथमतः प्रतिज्ञा की है कि "प्रचुरवि पंदितेंद्र रचनेय कायके रचिसुवरानंतु पेळे, उचितके तयकष्टु पेवेनध्यात्मवे निचितप्रयोजनषेनगे" अर्थात् कविगण अठारह अंगोंको लक्ष्यमें रखकर काव्यकी रचना करते हैं परन्तु मैं वैसा नहीं करूंगा। मुझे केवल थोडासा अध्यात्मविवेचन करना यहाँपर मुख्य प्रयोजन है। जिस समय ध्यानसे मेरा चिप्त विचलित होगा उस समय शुभ योगमें मेरा चित्त रहे एवं अध्यात्मविचार हो इस दृष्टिसे काव्यरचनाकी प्रतिज्ञा को है । इसलिए इसकी रचनामें कविने अन्य कवियोंका अनुकरण नहीं किया है। इसका वर्णन स्वाभाविक है। घिस पदार्थका उसने वर्णन किया है वह पदार्थ मैसर्गिकरूपसे पाठकोंके हवयमें अंकित हए बिना नहीं रह सकता । जो वर्णन उसे स्वर्यको पसन्द नहीं आया था उसे और ठंगसे जहां वर्णन करना चाहता था वहाँ तत्क्षण उसे बदलकर पाठकोंको अरुषि उत्पन्न नहीं हो पा रंगसे वर्णन हरता है ! थास्थानमें बैठे हुए पक्रवर्तीका वर्णन करते हुए वीररसको अच्छी तरहका टपका दिया है एवं उसकी सुन्दरताका अच्छा चित्र खींचा है, जिसे सुनकर ही अन्छा चित्रकार हूबहू चित्र सौंध सकता है। इसी प्रकार प्रत्येक स्थानका विचित्र वर्णन पाठकोंको मनमोहक हो गया है। संगीतशास्त्रमें गति-इस कविको गति संगीतशास्त्र में भी अद्भुत थी । औक्षोसे जिम पदायोंको हम लोग देख सकते है वह पदार्थ हमारे सामने न हो उसका वर्णन कर हमारे सामने लाकर ठहरा देना यह अद्भुत शक्ति है, फिर उसमें भी कानोंसे स्वरमेवोंको सुनकर आनन्द प्राप्त करानेवाले गानोंको न गाकर केवल विवेचनसे ही गानेसे भी अधिक आनन्दका अनुभव कराना यह इस कविका एक असाधारण कौशल कहना चाहिए। क्योंकि संगीतमें यह स्वयं प्रवीण पा। संगीतका वर्णन जहाँपर उन्होंने किया है वहाँपर गायन रसिक स्वयं चादमयंत्रको लेकर उसे बजाते हुए स्वर्गीय आनन्दको प्राप्त किये बिना नहीं रह सकता। इसकिए संगीत प्रेमियों को भी थाह आदरणीय है। कविने पूर्व माटक उसर ' नाटक प्रकरण में नाटयकलाके मध्य अंग नर्तनका बहुत ही उसम हंगसे वर्णन किया है। प्रकरणको नाचते समय नाटक प्रत्पका मोखोंके सामने हो रहा हो ऐसा मालूम होता है । इंद्रियोंफो गोचर होनेवाले पदार्थोंका असदृश रूपसे वर्णन करना यह कवियोंकी विद्वत्ता है। उसमें भी इंद्रियोंसे अगोचर पदार्थोको आंखों के सामने ला देना यह असाधारण शक्ति है । अतींद्रिय ज्ञानके गोचर परमारभको इस कविने इस बैंगसे वर्णन किया है कि मानो मालूम होता है कि आस्मा हमारे औषोंके सामने ही हो. या
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy