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उस काव्यको सुननेके लिए पण्डिताने राजासे आग्रह किया। राजाने अन्तरंग दरबारमें उसे सुन लिया। कवि स्वयं पीछे हटकर रानियोंसे ही उसका वर्णन कराता है, यह विचित्र बात है।
लोकमें दाम्पत्य प्रेमको आवश्यकतामा; माद करनेकी ३५असे फपि न विस समय कुसुमाजी लोटेसे अपने प्राणवल्लभकी कथा कह रही थी, उस समय उससे { तोतेसे ) चुप्पी साधनेका कारण पूछा तो उसने दम्पतियोंके प्रेमसे जीवन सुखमय होता है, इस विषयपर अच्छा चित्र खींचा है।
उसके बाद काध्यके कवयित्रियोंको योग्य सत्कार करके पण्डिताको प्रार्षमानुसार भरतेश उस दिन कुसुमाजीके घर भोजन के लिए जाते हैं। महापर कविने
और भी सरस प्रकरण खींचा है। सबसे पहले कुसुमाजो भरतको प्रसन्न फर के लिये वीणावादनकला प्रदर्शित करती है। सपनन्तर रात्रिका समय आनन्बसे जावे इस उद्देश्यसे दो नाटकोंकी योजना कर नेत्रमोहिनी, चित्तमोहिनी, नामके स्त्रीपापोंने एवं रूपाणि पदिममी आदि रानियोंने अपने नतमसे अन्तःपुरको प्रसन्न किया। इसी मामय प्रणयकलहके एक विचित्र दृश्यको दिखलाकर पकवीको कविौ शैया गृहको भेज दिया। यहींपर पाम्याग्रहको क्रियाओका सुसष्ट वर्णन करते हुए कविने शृङ्गाररससे कृतिको आप्लावित किया है। __दूसरे दिनके दिनक्रममें अभिषेक, देवपूजा, योगाम्यास, पारणा आदिका वर्णन बहुत अच्छे ढंगसे वर्णन किया है।
यद्यपि विग्विजम कल्याणमें युद्धोंका वर्णन विशेष नहीं है । तथापि षट्सायस्थ व्यंतर भूचर विद्याधर राजाओंको किस प्रकारके सामोपायसे वा किया इसका वर्णन यत्र-तत्र मिलता है 1 वस्तुतः भरतको भूमि साधनेके लिए बहुतमा युद्ध नहीं करना पड़ा। उसने अपने नामके बलसे ही पृथ्वीको साध ली थी। इस प्रकरणमें स्थान-स्थानपर पुत्ररत्नोंकी प्राप्ति, उनके संस्कार विशेष कादिका वर्णन करते हुए सुभद्रा देवीके विवाहसमारम्भका भी अच्छा चित्र खींचा है। उसके बार जिनदर्शन और तीपांगमन संधिकी रचना की है। लौटते समय बाइलिको अधीन करनेके प्रयत्नमें कटफविनोद, मदनसम्नाह, राजेन्द्रगुणवाक्य इत्यादि परिच्छेवोंमें मन्ततक युवकी संभावनाको व्यक्त करते हुए अन्समें अहिंसा धर्मके पालन के लिए, आदर्शन्यायकी स्थितिके लिए भाई-भाईका युद्ध योग्य नहीं, ऐसा समासकर वघनश्यातुर्यका जो प्रयोग भरतसे कराया गया है, वह हृदयंगम होकर लोकमें नोतिकी प्रवृत्ति करा सकता है। योगविजय, मोशविजय और अकोतिक्जियमें कविने प्रायः संसारको अस्थिरता घातलाकर भन्योंका चिप्स मोशकी ओर आकर्षित