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________________ सुननेपर केवल वैभवके वर्णनात्मक विषय होंगे, इस प्रकार भ्रम होनेपर भी प्रन्थको देखनेसे पाठकोंको मालूम होगा कि यह केवल पुराण अन्य नहीं है। इससे तस्वज्ञानला की हमको गोष्ट मोर 'मला! श्रामविज्ञानका वर्णन इतने सरस वेंगसे किया है, भ्रम होता है कि यह केवल अध्यात्मशास्त्र ही तो नहीं । संसारको प्रवृत्तिमें सत्वविचार, आत्मविचार वगैरह विषयोंमें मनुष्योंकी बहुत कम कपि होती है। वनको यह विषय बहुत कठिन मालूम होता है। परन्तु कैबिने उन कहिन विषयोंको इतना सरल व सरस बनाया है कि कैसा भी व्यक्ति क्यों न हो, ने इसको सुननेकी इच्छा होगी । पोडीसी रुचि उत्पन्न हो गई सो एफदफे नहीं, कई दफे सुननेकी इच्छा करेंगे । हम तो कहते है कि यह वस्तुतः अध्यात्मग्रन्म ही है, जिनको एकवफे इसका स्वाद आया उनका कल्याण अवश्यम्भावी है। तस्व विचारों में कविने अनन्त अपार शक्तिका उदाररूपसे वर्णन कर सर्व मतवाचौंको एकमतसे बालकल्याणके लिये प्रेरित किया है।
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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