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भरतेश वैभव परमेष्ठी व पंचपमेष्ठियोंकी स्तुति की, इसी प्रकार अन्य पात्र भी सामने आये, उन्होंने भी अनेक प्रकारके कौशल्योंका प्रदर्शन किया, उपस्थित सभाजन आनन्दसागरमें डुबकी लगाने लगे, आनन्दके उल्लास में ही भरतेश्वरने नाटक समाप्त करनेका संकेत किया, भगवान् आदिनाथके अन्तमंगलके साथ नाटककी समाप्ति हई। तदनन्तर रंगशेखर व पात्रोंका सत्कार भरतेश्वरने किया । नानाप्रकारके वस्त्राभरण उन स्त्रियोंको देकर सम्मान किया गया। तदनन्तर बुद्धिसागर मन्त्रीके तरफ देखकर सम्राट्ने कहा कि मन्त्री ! बहुत थक गये होंगे, अब विश्रांति लो। उत्तरमें बुद्धिसागरने कहा कि स्वामिन् ! आपके दरबारमें थकावट दूर हो गई है, यह पुण्य नाटक है। स्वामिन् ! यह विवेकशरण्य है। मा नाटक बिहा नकदम लावण्य नाटक है, यह नाटक बाहरसे भोगांमका दर्शन कराता है, परन्तु अन्तरंगसे योगांगका दर्शन दिलाता है । गायनके राम-रागांगको व्यक्त करते हैं, तथापि परिणाममें वीतरागत्वका निर्माण कराते हैं। लोगोंके लिए नृत्य तांडब है, परन्तु हंसाबलोकन करनेवालोंके लिये तत्व है ! स्वर्गलोकके सुखका अनुभव हुआ है, उसी प्रकार मोक्षसुखकी कल्पना भी आने लगी है । जिन ! जिन ! आपने यह सब कहाँ सीखा ? आपका अनुभव विचित्र है, आप आज मनुजेन्द्रपदमें ही देवेन्द्रपदका अनुभव कर रहे हैं। उसी प्रकार मुनियोंके समान मोक्षमार्गका भी अनुभव ले रहे हैं। स्वामिन् ! आप विवेकी हैं। आपके नाटकके ये स्त्रीपात्र कितने चतुर हैं ? इन्होंने कहाँ नैपुण्य प्राप्त किया ? समझमें नहीं आता, इनके चातुर्यको देखकर आश्चर्य होता है ! देव ! आप आत्मारूपी आकाश में विहार करते हैं । ये स्त्रियों आकाश में नृत्य कर रही हैं। इसमें आश्चर्य क्या है?
इतर राजाओंको यह प्रयोग आश्चर्यकारक मालूम होगा, आपके लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है। तोता अगर सफेद हो गया तो आश्चर्य होगा, परन्तु राजहंस शुभ्र होगा तो जगत्को कोई आश्चर्य नहीं हो सकता है । इसलिए इतर राजाओंको यह आश्चर्य है, आपको
नहीं।
राजन् ! इस कला-कौशल्यका कितने वर्णन करें ? दिक्कन्यका नाट्य, जलकन्यका नत्य आदि देखने लायक ही थे, अमरकांता नृत्य, नागकांता नृत्य, तारांगना नृत्य, पुष्पलता नृत्य, कल्पलता नृत्य, विधुल्लता नृत्य, पुष्पक नृत्य आदिको देखते हुए आँखोंसे आनन्दबाष्प झर