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________________ भरतेश वैभव ११३ देखता हूँ। उसी क्षण तुम ब्राह्म चिताओंको भूलने के लिए मदद करते हो । इसलिए हे अमृतस्वभावी वीतराग ! मेरे हृदयमें सदा निवास करो। कहीं भी मत जाना। हे निरंजनसिद्ध ! संसार नाटकका दर्शन करते हुए भी बोधावतंस नाटकमें सदा नर्तन करनेवाले तुम सदा सुखी व दुःखविध्वंसी हो । इसलिये मुझे सदा सद्बुद्धि प्रदान करो। इसी भावनाका फल है कि भरतेश्वर सर्व वातावरणमें आनंदका अनुभव करते हैं। इति पूर्वनाटक संधि -०.. . . अथ उत्तरनाटक संधि पूर्वनाटक समाप्त हो गया है। उत्तरनाटक देखनेकी इच्छासे भरतेश्वर प्रतीक्षा कर रहे हैं। उत्तरनाटककी पात्र स्त्रियाँ आ रही हैं । उसमें भाग लेनेवाली १६ स्त्री पात्र हैं। परदेके सामने खड़े होकर मृदंगवादक भरतेश्वरको नमस्कार कर मृदंगबादन करने लगा। उस समय तरिकिट, तदिकिट, रिक्कटि, रिक्कट, दिमि, दिदिमि इस प्रकारका आवाज आ रहा है। उसके साथ तालधारी भी खड़े हैं । मृदंगके लगानुसार नालधारी तालवादनके लिए सन्नद्ध हैं। वाद्यध्वनिको बंद करके रंगशेखर नामका सूत्रधार सामने आया । उसने भरतेश्वरके सामने प्रार्थना की कि सकलकलाधर ! सार्वभौमोत्तम ! सुकविजनांभोजभानु ! मकरांक निर्जितरूप ! षट्खंडनायक स्वामिन् ! एक निवेदन है। मुझे विशेष कुछ भी मालम नहीं है। आपको देखनेके लिए देवलोकसे १६ देवांगनायें आई हुई हैं, ऐसी १६ स्त्रियां दिख रही है। अथवा १६ मनुओंको सम्पत्ति एकत्रित होकर आई हो, ऐसी दिखती हैं। उन १६ नारीपात्रोंका अवलोकन कीजिये, हे १६वें मनु पुरुषोत्तम ! आप देवेन्द्र हैं, आपके मन्त्री बुद्धिसागर सुरगुरु हैं। ये स्त्रियाँ देवांगनायें हैं। इस नाटकमें कितना रंग आता है मुझे देखना है । यह कहकर वह अन्दर चला गया। तदनन्तर १६ नारीपात्रोंने आकर विविध वाद्य व साधन लेकर गायन करना प्रारम्भ किया, सबसे पहिले शिखरिणी व सिंजिनी नामक पात्र उपस्थित हुए। उन्होंने नानाप्रकारके पदकौशल्यसे भगबाद सिद्ध
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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