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________________ भरतेश वैभव १११ पताका, स्तम्भचित्र, स्त्रीपुरुषोंका रूप, धर्मचक्र, जिन महोत्सव आदि नाना प्रकारकी कलामय आकृतियोंका वहां दर्शन हो रहा था। इस प्रकारके आश्चर्यकारक नाटक शालामें आकर भरतेश्वर सिंहासनारूढ़ हुए थे। उस समय वहाँपर कलाकार आदि सभी आ रसिक, कलाकार, राजकुमार, विद्वान्, राजगण, कवि, गायकवीर वगैरह क्रम-क्रमसे आ रहे हैं। वेश्याजन, नाट्यशास्त्रकोविद, भावरंजक, गुणीजन, मन्त्रीगण आदि आकर भरतेश्वरको नमस्कार कर रहे हैं एवं अपने योग्य स्थानमें बैठ रहे हैं। ___कुटिल नायक, शठनायक, दक्षिणनायक, घटनायक, अनुकूलनायक विट, विदूषक, पीठमर्दक आदि सर्व आकर उपस्थित हुए 1 बृद्धविवेकी, स्वामीकार्यपरायण, बुद्धिमागर मन्त्रीने भाकर भटतेश्वरको नमस्कार किया एवं सामनेके नियोजित स्थानपर बैठ गया। परदेके अन्दर भरतेश्वरके पीछे दोनों ओर भरतेश्वरकी रानियाँ बैठी हुई हैं, इधरउधर दण्डधारी स्त्रियाँ संचार करती हुई लोगोंके बैठने की व्यवस्था कर रही हैं। सावकाश ! सावधान ! इधर बैठिये, उधर न जाइये इत्यादि कहती हुई वह नजर आ रही हैं। तालधारी ताल लेकर नत्यकलाके अनुकूल ताल-वादन कर रहे हैं, उसकी ध्वनि अधतपर्व थी, तालधारी लोग करीब १०० थे, उन्हें ताल शास्त्रका तंत्र मालम था, मध्य, विलंब और द्रत बगैरहका क्रम उन्हें मालूम था, उसे मृदंगका साथ मिल गया है। उनके मधुर शब्दोंसे सबको रोमांच हो रहा है। उसके साथ ही अनेक चर्मवाद्योंके शब्द तविकट, तरकिट, तोकिट, तोगि, धिक्काट आदिके रूपमें अत्यन्त आकर्षक पद्धतिसे सुनने में आ रहे हैं। - उम गायनमें बिविध शास्त्रानुसार, विविध वाद्योंके आधारमे ब्रह्मरंध्रपर स्वर चढ़ाकर वे गा रही हैं, उस समयमें वास्तव में ब्रह्मानंद ही आ रहा था, उस गायनका विषय भी अत्यन्त आकर्षक था। भगवान आदिनाथ, सिद्धपरमात्मा, साधुसन्त आदिका वर्णन करके परमात्माकी स्तुति करने लगी। उस गायनके साथ में नाना-प्रकारके नृत्य भी चालू हैं। नाटकका वृद्ध सुत्र सुसज्जित वेषभूषामें भरतेश्वरादिके समक्ष आकर प्रार्थना करने लगा कि देव ! आप विविध विद्याओंके परीक्षक हैं, इसकी प्रसिद्धि स्वर्गमें भी है, इसलिए स्वर्ग में भी आपको प्रसन्न
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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