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________________ भरतेश वैभव ___ इस बातको कहते समय भरतेश्वरके कुल, शील व गुणोंके प्रति मकरन्दाजीके हृदयमें भी प्रसन्नता हो रही थी, परन्तु उसे छिपाकर वह अपने मातृगृहकी प्रशंसा कर कहने लगी। बहिन ! क्या हतभाग्य राजकुमारी यदि किसी बड़े भाग्यवान् राजाकी रानी हो जाय तो वह अपने चातुर्य व प्रेमसे मातृगृहको उसके बराबरीका नहीं बतायेगी ? यदि पतिको प्रसन्न कर वह अपने मातापिताकी प्रतिष्ठा नहीं कराती है, तो उसे राजपुत्री क्यों कहना चाहिये? __ उत्तम क्षत्रियकुलमें उत्पन्न कन्याओंका यह कार्य होना चाहिये कि वह चाहे कितने ही संपत्तिशाली राजाओंके घरमें, यहांतक कि चक्रवर्तीके घरमें ही क्यों न पहँचे, वहांपर भी अपने माता-पिताके घर, धन, पत्तिके मन, पिताके मन व अपने मन आदिके विषयमें उसे अपनी कुशलतासे समानतारूप प्रतिष्ठा लानी चाहिये । बहिन ! बड़े घरमें प्रवेश करनेसे जिस घरमें जन्म हुआ है उसे भूल जाना, कोई बुद्धिमत्ता नहीं है । यह राजकन्याओंका लक्षण है । ऐसी अवस्थामें, बहिन ! अब अपने घरकी प्रशंसा करना छोड़कर इस राजाकी ही प्रशंसा करना क्या तुम्हें उचित है? इन बातोंको सुनकर कुसुमाजी बोलने लगी बहिन ! यह सब बुद्धिमत्ता तुम्हारे पास ही रहने दो। तुम्हारा जिस समय विवाह किसी राजाके साथ होगा उस समय वहाँ राजकन्याओंके चातुर्यको बतलाना । मैं कोरा घमण्ड करना नहीं जानती। लोकके अन्य राजाओंको अन्य राजाओंकी बराबरीके रूपमें वर्णन कर सकते हैं, परंतु लोकके सब राजाओंको एक छत्रके अंदर रक्षण करनेवाले पतिदेवकी अन्य लोगोंके साथ बराबरी करना असंभव है। बहिन ! तुम ही बोलो 1 प्रथम तीर्थकरके जो प्रथम पुत्र हैं प्रथम चक्रवर्ती हैं और सोलहवें मनु हैं उनकी बराबरी करनेवाले क्या लोकमें कोई मिल सकते हैं ? दुर्गध शरीरको दुर्गंध शरीरकी जोड़ी मिल सकती है । मलमूत्ररहित निर्मल शरीरको कोई जोड़ी मिल सकती है ? बाहरके विषयोंसे प्रसन्न होनेवाले मूखोंकी जोड़ी मिल सकती है । परमात्म-योगके अनुभव करनेवाले आत्मसुखी पति-देवकी बराबरी कोन कर सकता है?
SR No.090101
Book TitleBharatesh Vaibhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnakar Varni
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages730
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size16 MB
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