SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गोम्मटगिरि | 295 हैं। इसमें शयनावस्था में विष्णु की मूर्ति है। इसका गोपुर पाँच मंज़िल ऊँचा है। यह भी कहा जाता है कि इसका निर्माण विजयनगर शासकों, अलवार सन्तों, आचार्यों ने अनेक चरणों में कराया था। इसी प्रकार यहाँ के पतलंकण (Pathalankana) मण्डप का निर्माण हैदरअली ने कराया था। श्रीरंगपट्टन 1799 ई. में टीपू सुलतान की पराजय के बाद अंग्रेज़ों के अधिकार में आ गया। यहाँ टीपू सुलतान का किला काबेरी नदी के बीच में बना हआ है। यहाँ का दरिया दौलत सिंह (बाग़) टीपू सुलतान का ग्रीष्म महल और एकाध मस्ज़िद देखने लायक हैं। यदि यात्री बस स्टैण्ड से जैन मन्दिर आता है तो उसे काफी चलना पड़ेगा। क़िले के प्रवेशद्वार से होकर आने पर दो ऊँची मीनारें सामने दिखाई देती हैं जो कि सुनहरी हैं। सबसे पहले जामियाए टीपू सुलतान नामक कॉलेज है। यात्री को पूछते-पूछते जाना होगा। इस कारण यहाँ रेल से यातायात करने में भी सुविधा होगी। जैन मन्दिर भी श्रीरंगनाथ स्वामी मन्दिर से थोड़ी ही दूरी पर है। गोम्मटगिरि (श्रवणगुड्डा) कर्नाटक के दिगम्बर जैन तीर्थों और स्मारकों की सूची में (इस पुस्तक के यात्रा-क्रम के अनुसार) सबसे अन्तिम नाम है गोम्मटगिरि का। गोम्मटगिरि का दूसरा नाम श्रवणगुड्डा भी है। श्रवण का तो सीधा सम्बन्ध 'श्रमण' या जैन साधु से है जबकि 'गुड्डा' का अर्थ है छोटी पहाड़ी। इस प्रकार श्रवणगुड्डा का अर्थ हुआ जैन साधु या श्रमण की पहाड़ी.। अवस्थिति एवं मार्ग जहाँ तक रेल-मार्ग का प्रश्न है, यह स्थान मैसूर-अरसीके रे-हुबली छोटी लाइन पर सागरकट्टै नामक रेलवे स्टेशन से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर है। किन्तु रेलमार्ग से वहाँ जाने में कठिनाई हो सकती है। गोम्मटगिरि के लिए सबसे अच्छा साधन बस है। यह गिरि मैसूर से केवल 26 कि. मी. की दूरी पर है । मैसूर-हुनसुर-मडिकेरी (कुर्ग) मार्ग पर या संक्षेप में मैसूर से सोलह कि. मी. की दूरी पर येलवाल नामक स्थान आता है। वहाँ से सड़क गोम्मटगिरि के लिए मुड़ती है और दस किलोमीटर चलने पर गोम्मटगिरि पहँचा जा सकता है। मैसूर से चलनेवाली बसें मैसूर-गोम्मटगिरि और गोम्मटगिरि कृष्णराजनगर की होती हैं। ये बसें गोम्मटगिरि होते हुए कुछ गाँवों को भी जाती हैं। तीर्थक्षेत्र यहाँ की 18 फुट ऊँची काले पाषाण की मूर्ति भुला दी गई थी। सन् 1950 ई. में
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy