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________________ 296 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) धर्मानुरागी श्री सी. बी. एम. चन्द्रय्या और उनके साथ के अन्य श्रावक बन्धुओं ने तीर्थयात्रा से लौटते हुए इस उपेक्षित प्रतिमा को अचानक देखा और तभी से वे भक्तिभाव से प्रेरित होकर इस गोम्मटगिरि की प्रसिद्धि के लिए सतत प्रयत्नशील हैं। दक्षिण भारत की सुप्रसिद्ध अंग्रेजी पत्रिका 'हिन्दू' (Hindu) के 26 सितम्बर 1976 ई. के अंक में इसका कुछ विवरण छापा था। उसके अनुसार इस मूर्ति का निर्माण इस प्रदेश के जैनधर्मानुयायी चंगाल्व राजाओं के समय में (ग्यारहवीं शताब्दी) में हुआ था । ये राजा चामुण्डराय के वंशज थे। उन्होंने ही इस मूर्ति का निर्माण कराया था। मूर्ति इस समय कर्नाटक सरकार के पुरातत्त्व विभाग के संरक्षण में एक स्मारक है। वैसे पुरातत्त्वविदों का यह मत है कि यह मूर्ति कम-से-कम 800 वर्ष प्राचीन अवश्य है। इस स्थान के आस-पास 800 वर्ष पुराने भवनों के अवशेष भी मिले हैं। मति की निर्माण-शैली को देखते हुए कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि यह चौदहवीं शताब्दी की हो सकती है। उपर्युक्त पहाड़ी के पास ही एक तालाब है। उसमें एक स्तम्भ पर शिलालेख है जो घिस गया है। फिर भी उस पर बाहुबली और ब्रह्मदेव की मूर्तियाँ पहचानी जा सकती हैं। यह भी अनुश्रुति है कि किसी समय यह स्थान गोम्मटपुर कहलाता था और आस-पास के लोग यहाँ गोमटेश्वर के अभिषेक के लिए एकत्र होते थे। किसी समय यह क्षेत्र प्रसिद्ध जैन प्रदेश रहा होगा। इस अनुमान का आधार यह है कि आज भी आस-पास के गाँवों के नाम जनधर्म से सम्बन्धित हैं; जैसे जिन्नहल्ली (Jinnahalli), हलेबीडु (Halebeedu), बिलिकेरे (Bilikere), तथा मल्लिनाथपुर (Mallinathpur) आदि । कन्नड़ कवि मंगरस ने भी अपनी 'नेमिजिनेश संगति' में भी इस स्थान का नाम निर्दिष्ट किया है। इसके अतिरिक्त लगभग 20 कि. मी. की दूरी पर बस्सी होस्कोटे नामक स्थान पर कावेरी नदी के किनारे लगभग दस फुट ऊँची एक प्राचीन बाहुबली मूर्ति है जो कि गारे की बनी हुई है। वह किसी पहाड़ी पर नहीं, अपितु जमीन पर ही प्रतिष्ठित है। वह अच्छी हालत में नहीं है। वहाँ अच्छी सड़क भी नहीं जाती है, केवल जीप से पहुँचा जा सकता है। आशय यह है कि इस जैनधर्मप्रिय प्रदेश में बाहुबली की मान्यता बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है और उसका क्षेत्र भी काफी व्यापक था। - गोम्मटगिरि का नाम सुनते ही कोई भयानक या खड़ी चढ़ाई वाली पहाड़ी यात्री या पर्यटक के ध्यान में आ सकती है किन्तु उसे यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह पहाड़ी लगभग सौ फुट ऊँची है और लगभग तीस फुट ही चौड़ी है। न कोई झाड़ झंखाड़ और न तीखी ढलान । कुल 80-85 सीढ़ियाँ हैं जो कि नवनिर्मित हैं और केवल 71 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद ही बाहुबली मन्दिर का प्रवेशद्वार आ जाता है। आकाशीय बिजली गिरने से सम्भवतः इस छोटी-सी सीढीनमा पहाडी में दरार पड़ गई ऐसा जान पड़ता है। किसी समय यहाँ घना जंगल रहा होगा। चारों ओर की जमीन पथरीली अवश्य है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, 71 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद पाषाण-निर्मित प्रवेशद्वार है। उसके सिरदलपर पद्मासन तीर्थंकर उत्कीर्ण हैं । नीचे चारभुजावाली यक्ष मूर्ति है जिसके आभूषण सुन्दर हैं और मुकुट ऊँचा है।
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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