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________________ 294 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थं (कर्नाटक) की सुमधुर कल-कल आवाज़ सुनकर आनन्द का अनुभव करता है। पर्यटक बसें पर्यटक को ठेठ उद्यान में पहुँचा देती हैं और वह बाँध के जल के दृश्य का आनन्द नहीं ले पाता। ये प्रायः संध्या समय ही आती हैं। जो इस उद्यान में फोटोग्राफी करना चाहें उन्हें दिन के तीन बजे तक वहाँ अवश्य पहुँच जाना चाहिए। जो भी हो, मैसूर की यात्रा पर आने वाले हर यात्री को यह उद्यान अवश्य देखना चाहिए। श्रीरंगपट्टन (दर्शनीय स्थल) अवस्थिति एवं मार्ग मैसूर की यात्रा पर आनेवाले यात्री प्रायः इस स्थान की भी यात्रा करते हैं। मैसूर-बंगलोर रेल-मार्ग और सड़क-मार्ग दोनों पर स्थित यह स्थान मैसूर से केवल 16 कि. मी. की दूरी पर है। यहाँ की यात्रा रेल से अधिक सुविधाजनक है । आबादी स्टेशन से लगी है। जैन मन्दिर भी पास पडता है। यदि सडक-मार्ग से मैसर से यात्रा की जाए तो श्रीरंगपटन से लगभग दो किलोमीटर पहले ही हिन्दी और अंग्रेजी में सड़क के किनारे 'श्रीरंगपट्टन जैन मन्दिर' का बोर्ड लगा है। कुछ बसवाले यात्री को वहाँ उतार भी देते हैं । स्थानीय जैन मन्दिर स्थानीय जैन मन्दिर का पाषाण का अहाता लगभग 1200 फुट लम्बा है। उसमें एक भीतरी अहाता और है। मन्दिर के सामने 'श्री दिगम्बर जैन मन्दिर-आदिनाथ मन्दिर' (हिन्दी और अंग्रेजी में लिखा है। बताया जाता है कि यह मन्दिर लगभग 850 वर्ष पुराना है। मन्दिर के प्रथम हॉल की दीवाल के पास लगे एक स्तम्भ पर छोटा शिलालेख पुरानी कन्नड़ में है। यहीं के नौवीं सदी के शिलालेख में उल्लेख है कि श्रवणबेलगोल की चन्द्रगिरि पर चन्द्रगुप्त और भद्रबाहु के चरण हैं । मन्दिर पाषाण-निर्मित है और अनेक स्तम्भों से युक्त है। मन्दिर के द्वार की चौखट पर द्वारपाल अंकित हैं किन्तु सिरदल पर यक्ष का अंकन है। प्रवेशमण्डप के बाद के कोष्ठ में चाँदी की चौखट में दोनों ओर धरणेन्द्र और पद्मावती की मूर्तियाँ हैं। उसके बाद के कोष्ठ में काले पाषाण की, मकरतोरण से अलंकृत एक चौबीसी है। गर्भगृह में पाँच सिंहों के आसन पर आदिनाथ की काले पाषाण की लगभग ढाई फुट ऊँची मूर्ति मकरतोरण और छत्रत्रयी से अलंकृत मन्दिर के अहाते में ही एक अर्चक का घर है। यहां ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है । उपर्युक्त जैन मन्दिर के सामने की सीधी सड़क रंगनाथ स्वामी मन्दिर को जाती है। यह रेलवे स्टेशन के पीछे एक बहुत बड़ा मन्दिर है। कहा जाता है कि यहाँ के एक शिलालेख के अनुसार, नागमण्डल के शासक हब्बर ने 101 जैन मन्दिरों को नष्ट करके इसका निर्माण कराया था। जो भी हो, यह मन्दिर विशाल किन्तु साधारण है और इसे भी देखने के लिए यात्री आते
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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