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________________ श्रवणबेलगोल | 253 बसदियाँ (मन्दिर) बनवाई थीं और 200 बसदियों का जीर्णोद्धार कराया था। ____ यहाँ बरामदों में जो तीर्थंकर-मूर्तियाँ हैं उनके सम्बन्ध में शिलालेखों से यह जानकारी मिलती है कि नयकीति सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य बसवसेट्टि ने कठघरे की दीवाल का निर्माण कराया था और 24 तीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित करायी थीं। इन्हीं सेट्टि के पुत्रों ने प्रतिमाओं के सामने की जालीदार खिड़कियाँ बनवाई थीं। इसी प्रकार 1510 ई. के एक शिलालेख से यह जानकारी मिलती है कि चंगाल्वनरेश महादेव के प्रधान सचिव केशवनाथ के पुत्र चन्न बोम्मरस और नञ्जरायपटन के श्रावकों ने गोमटेश्वर-मण्डप के ऊपरी भाग (वल्लिवाड) का जीर्णोद्धार कराया था। सुत्तालय में कुल 43 मूर्तियाँ और गणधर के चरण हैं। ये तीर्थंकर-मूर्तियाँ तीर्थंकरों के क्रम से नहीं हैं। सभी मूर्तियाँ छत्रयुक्त एवं मकर-तोरण से सुसज्जित हैं और उन सबके साथ यक्ष-यक्षी का अंकन है। उनका आसन पाँच सिंहों पर आधारित है। इनकी ऊँचाई तीन फुट छह इंच से लेकर साढ़े चार फुट तक है। मकर-तोरण से युक्त बाहुबली की मूर्ति पाँच फुट की है। उस पर छत्र है और लताएँ हटाती देवियों का भी अंकन है। चन्द्रप्रभ की मूर्ति अमृतशिला की है। चन्द्रप्रभ की एक मूर्ति पर मारवाड़ी में लेख है कि उसे सेनवीरमतजी एवं अन्य सज्जनों ने संवत् 1635 में प्रतिष्ठित कराया था। सुत्तालय में एक शिलालेख भी है। मूर्तियों की श्रृंखला में सबसे प्रथम स्थान श्रवणबेलगोल की शासनदेवी कूष्माण्डिनी देवी का है। इस देवी की यहाँ दो मूर्तियाँ (एक प्रारम्भ में और दूसरी तीर्थंकर मूर्तियों के अन्त में) हैं। एक मूर्ति सिद्ध भगवान की है। यह भी आश्चर्य ही है कि तीर्थंकर-मूर्तियों में सबसे पहले चन्द्रप्रभ की है और सबसे अन्त की मूर्ति भी चन्द्रनाथ की है जो कि सुत्तालय से बाहर है । शासन-देवी कूष्माण्डिनी के अतिरिक्त अन्य मूर्तियाँ इस प्रकार हैं-(1) चन्द्रप्रभ, (2) पार्श्वनाथ, (3) शान्तिनाथ, (4) आदिनाथ, (5)पद्मप्रभ, (6) अजितनाथ, (7) वासुपूज्य, (8) कुंथुनाथ, (9) विमलनाथ, (10) अनन्तनाथ, (11) संभवनाथ, (12) सुपार्श्वनाथ, (13) पार्श्वनाथ (14) मल्लिनाथ, (15) शीतलनाथ, (16) अभिनन्दननाथ, (17) चन्द्रनाथ, (18) श्रेयांसनाथ, (19) मुनिसुव्रतनाथ, (20) सुमतिनाथ, (21) पुष्पदन्त, (22) सिद्ध परमेष्ठी, (23) नमिनाथ, (24) नेमिनाथ, (25) महावीर, (26) शान्तिनाथ, (27) अरहनाथ, (28) मल्लिनाथ, (29) मुनिसुव्रतनाथ, (30) पार्श्वनाथ, (31) महावीर, (32) विमलनाथ, (33) पार्श्वनाथ, (34) धर्मनाथ, (35) महावीर, (36) मल्लिनाथ, (37) शान्तिनाथ, (38) संभवनाथ, (39) कूष्माण्डिनी देवी (40) गणधर-चरण, (41) बाहुबली और (42) बाहर की चन्द्रनाथ मूर्ति । ___ गोमटेश्वर मूर्ति के सामने जो मण्डप है उसकी मुंडेर पर भी दाएँ और बाएँ चूने से निर्मित कूष्माण्डिनी देवी, पद्मावती, देवेन्द्र, सरस्वती और लक्ष्मी की मूर्तियाँ हैं। मूर्ति के पीछे भी एक मण्डप है जो लगभग 15 फुट चौड़ा और 90 फुट लम्बा जान पड़ता है। इसका उपयोग मस्तकाभिषेक के समय सामग्री रखने के लिए किया जाता है । विद्यत्पात से मूर्ति को बचाने के लिए एक लाइटनिंग कण्डक्टर भी मूर्ति के पीछे लगा दिया गया है। मूर्ति के पास से ही ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ हैं। मूर्ति के सामने के मण्डप की छत से भी मूर्ति का ऊपरी भाग देखा जा सकता है। किन्तु यह मार्ग सबके लिए खुला नहीं है। वहाँ से गोमटेश्वर
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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