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________________ 252 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थं (कर्नाटक) से अलंकृत है। उसके हाथों में दो हिस्सों वाला वह गुल्लिकाय (एक फल ) है जिसमें भरकर वह दूध लाई थी और उस अल्प दूध से ही पूरी मूर्ति का अभिषेक हो गया था और उसकी जो धार बह निकली थी उससे कल्याणी सरोवर भी धवल हो गया था । श्रुति है कि उसकी यह मूर्ति स्वयं चामुण्डराय ने बनवाई थी । उसकी पॉलिश अब भी चमकदार है । इस मण्डप में गुल्लिकायज्जी के पीछे एक शिलालेख है । मण्डप खुला है और उसमें पाँच स्तम्भ हैं । उपर्युक्त मण्डप की ऊपरी मंज़िल में लगभग 6 फुट की ब्रह्मदेव की मूर्ति स्थापित है । इन्हें क्षेत्रपाल कहा जाता है । आचार्य नेमिचन्द्र के ग्रन्थ 'गोम्मटसार' में उल्लेख है कि यक्ष के में मुकुट एक ऐसा रत्न है जो गोमटेश्वर मूर्ति के चरणों को नित्य प्रकाशित करता रहता है । इतना अवश्य है कि इस यक्ष की मूर्ति का निर्माण इस प्रकार किया गया है कि ब्रह्मदेव की दृष्टि सदा ही गोमटेश्वर के चरणों पर रहती है । मुखमण्डप —– गुल्लिकायज्जी के सामने एक खुला मुखमण्डप हैं । उसमें 16 स्तम्भ है । उसी तीन बलिपीठ या दीपक के लिए स्थान बने हुए हैं । इस मण्डप में भी मौक्तिक मालाओं, हँसों और छत में कमल आदि का उत्कीर्णन है । इसी से लगा हुआ एक और मण्डप है । उसमें बारह स्तम्भों पर हँसों और पत्रावली का आकर्षक उत्कीर्णन है । उसी में बायीं ओर है बारहवीं सदी के कन्नड़ कवि बोप्पण द्वारा रचित वह प्रसिद्ध शिलालेख जिसमें गोमटेश्वर मूर्ति निर्माण की संक्षिप्त जानकारी और मूर्ति की विशेषताओं का काव्यात्मक भाषा में उल्लेख है । दूसरी ओर के शासन में हुल्लराज द्वारा तीन गाँव दान में दिए जाने का उल्लेख है । इसी मण्डप से होकर बाहुबली मन्दिर में जाने का महाद्वार है । उसके दोनों ओर छह फुट ऊँचे द्वारपाल बने हुए हैं । द्वार के सिरदल पर पद्मासन तीर्थंकर मूर्ति है । सुत्तालय – गोमटेश्वर की मूर्ति के दर्शन के लिए जैसे ही हम द्वार से अन्दर प्रवेश करते हैं, हमें एक और मण्डप मिलता है । उसकी छत की कारीगरी भी दर्शनीय है । यह छत नौ भागों में विभाजित है । आठ खण्डों में आठ दिक्पालों की मूर्तियाँ हैं और बीच के खण्ड में बारीक फूल-पत्तियों के घेरे में, इन्द्र की आकर्षक मूर्ति है । इन्द्र के हाथ में एक कलश है मानो वह गोमटेश्वर का अभिषेक करना चाहता है । यह हम देख चुके हैं कि सम्भवतः इन्द्र की इस आकर्षक मूर्ति के कारण ही विन्ध्यगिरि को कहीं-कहीं इन्द्रगिरि भी कहा गया है । इस मण्डप के तथा अन्यत्र के स्तम्भों पर नर्तकियों या अप्सराओं का सुन्दर अंकन है । मण्डप का निर्माण मन्त्री बलदेव ने 12वीं सदी में कराया था । बाहुबली की मूर्ति हमारे सामने है । इससे पहले हम उनके चारों ओर के परकोटा और उसके तीन ओर प्रदक्षिणा - पथ (सुत्तालय ) में प्रतिष्ठित तीर्थंकर मूर्तियों आदि की चर्चा कर लें । गोमटेश्वर के दोनों ओर खुदे लेख से ज्ञात होता है कि इस महामूर्ति के परकोटे का निर्माण लगभग 1118 ई. में गंगराज ( होय्सलनरेश विष्णुवर्धन के सेनापति ) ने कराया था (श्री गंगराजे सुत्ताले करवियले) । सेनापति भरतमय्य ने उपर्युक्त मण्डप का कराया था। उनकी पुत्री द्वारा लिखाए गए लेख के कठघरा ( हप्पलिगे) 1160 ई. में निर्माण अनुसार उन्होंने गंगवाडि में 80 नवीन
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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