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________________ 236 / भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (कर्नाटक) गोमटेश्वर से पहले की बाहुबली मूर्तियाँ जब तक और भी प्राचीन बाहुबली मूर्तियाँ प्राप्त नहीं होतीं, तब तक यह कहा जा सकता है कि कदम्बराज रविवर्मा द्वारा पाँचवीं शताब्दी में निर्मित 'मन्मथनाथ' (कामदेव या बाहुबली) के मन्दिर का निर्माण सम्भवतः पहला बाहुबली मन्दिर सिद्ध होता है। इससे सम्बन्धित शिलालेख उत्तर कर्नाटक जिले के बनवासि के निकट गुदनापुर ग्राम में प्राप्त हुआ है। कनाटक के अन्य स्थानों की ज्ञात प्राचीन बाहुबली मूतियाँ इस प्रकार है ऐहोल की एक गुफा में बाहुबली की मूर्ति-यह सातवीं सदी की मानी जाती है। बाहुबली की जटाएँ कन्धों तक प्रदशित हैं और उनकी बहनें लताओं को हटाते हुए दिखाई गई हैं। प्रतिमा लगभग सात फीट ऊँची है। बादामी का जैन गुफा-मन्दिर-इस गुफा-मन्दिर में बाहुबली की अत्यन्त सुन्दर आठ फीट ऊँची प्रतिमा है जो छठी या सातवीं सदी में चट्टान को काटकर बनाई गई होगी (वैसे विद्वान् इस गुफा को आठवीं सदी में निर्मित मानते हैं)। हुमचा में 978 ई. में राजा विक्रम सान्तर ने एक विशाल 'बाहुबली बसदि' बनवाई थी जिसकी अब केवल चौकी ही शेष रह गई है और बाहुबली की जीर्ण पाँच फीट ऊँची प्रतिमा अब कुन्द-कुन्द विद्यापीठ भवन में रखी हुई है । इस मूर्ति पर भी जटाएं प्रदर्शित हैं किन्तु लताएँ केवल पैरों तक ही उत्कीर्ण हैं। गोमटेश्वर-मूति-निर्माण की कहानी चामुण्डराय की जिनभक्त माता काललदेवी ने पुराण का श्रवण करते समय भरत और बाहुबली की कथा के प्रसंग में यह सुना कि चक्रवर्ती भरत ने अपने परम तपस्वी लघु भ्राता की पोदनपुर में 525 धनुष ऊँची एक मूर्ति बनवाई थी किन्तु काल के प्रभाव से अब उसके आसपास कुक्कुट सॉं का वास हो गया है और परम शान्तिदायक इस मूर्ति के दर्शन अब दुर्लभ हो गए हैं । यह सुन काललदेवी ने प्रतिज्ञा की कि वे तब तक दूध ग्रहण नहीं करेंगी जब तक कि वे इस मूर्ति का दर्शन न कर लें। मातृभक्त चामुण्डराय को अपनी पत्नी अजितादेवी से जब यह बात मालूम हुई तो वे अपनी माता की इच्छा की पूर्ति के लिए उद्यत हुए । सेनापति और मन्त्री तो वे थे ही, कुछ सैनिकों को साथ लेकर रथारूढ़ हो वे पोदनपुर की खोज में निकल पड़े। चलते-चलते वे श्रवणबेलगोल आए । वहाँ उन्होंने चन्द्रगिरि पर भद्रबाहु स्वामी के चरणों की वन्दना की और वहीं पर पार्श्वनाथ के दर्शन किए। उनके साथ उस युग के महान् आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती भी थे। चामुण्डराय के दल ने रात्रि-विश्राम के लिए श्रवणबेलगोल में पड़ाव डाला। रात्रि में चामुण्डराय को स्वप्न में बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ की यक्षिणी कष्माण्डिनी देवी, जो कि श्रवणबेलगोल में आज भी विशेष मान्यता प्राप्त शासन-देवी है, ने कहा, "पोदनपुर बहुत दूर है। वहाँ की बाहुबली मूर्ति कुक्कुट सों से घिर गई है, उसके दर्शन दुर्लभ हो गए हैं। वहाँ की तुम्हारी यात्रा कठिन है । अतः प्रातःकाल स्नानादि शुद्धिपूर्वक सामने की बड़ी पहाड़ी पर सोने का एक तीर चलाओ। जहाँ तुम्हारा तीर गिरेगा वहीं बाहुबली प्रकट होकर तुम्हें दर्शन देंगे।"
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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