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________________ श्रवणबेलगोल / 235 मन्त्री एवं सेनापति थे चामुण्डराय । चामुण्डराय तीन राजाओं - मारसिंह, राचमल्ल और उसके उत्तराधिकारी रक्कसगंग के मन्त्री रहे । सेनापति के रूप में उन्होंने क्षय को प्राप्त हो रहे गंगराज्य की, 18 युद्धों में विजय प्राप्त कर, अपूर्व सेवा की। सैनिक विजयों के कारण उन्हें 'वीरमार्तण्ड', 'रण रंगसिंह', 'वैरिकुल कालदण्ड', 'समरकेसरी', 'सुमटचूडामणि' आदि अनेक उपाधियाँ प्राप्त थीं । यह जानकारी हमें श्रवणबेलगोल की विध्यगिरि पर त्यागद ब्रह्मदेव स्तम्भ पर खुदे लेख से मिलती है । इस स्तम्भ के तीन तरफ चामुण्डराय सम्बन्धी और भी जानकारी थी किन्तु हेग्गडे कण्ण नामक एक सज्जन ने अपना लेख लिखवाने के लिए यह जानकारी घिसवा दी । गोमटेश्वर मूर्ति सम्बन्धी जानकारी भी उसमें रही होगी। खैर, वह अब हमें धार्मिक ग्रन्थों से मिल जाती है । समरधुरन्धर चामुण्डराय आचार्य अजितसेन और आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के शिष्य थे, उनके उपदेश सुनते थे और धर्म-चर्चा करते थे । कहा जाता है कि एक बार आचार्य नेमिचन्द्र प्राचीन ग्रन्थ 'षट्खण्डागम' का अध्ययन कर रहे थे कि चामुण्डराय उधर आ निकले तो आचार्य ने ग्रन्थ बन्द करके रख दिया और उनसे कहा कि उसका विषय कठिन है । चामुण्डराय ने उन्हें उसे पढ़ाने का आग्रह किया तो आचार्य ने सरल भाषा में 'गोम्मटसार' नामक एक ग्रन्थ ही रच दिया। जिसका नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा (चामुण्डराय का एक नाम 'गोम्मट' भी था और इसीलिए उनके द्वारा प्रतिष्ठित बाहुबाली की मूर्ति 'गोमटेश्वर' भी कहलायी) । चामुण्डराय ने धर्मग्रन्थों का भी गहन अध्ययन किया था । इस प्रकार वे शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत हो गए। उनके रचित ग्रन्थ हैं - 1. गोम्मटसार की वीरमार्तण्डी नामक Saras टीका जो अभी अनुपलब्ध है, 2. चारित्रसार और 3. चामुण्डराय पुराण या त्रिषष्टिलक्षणमहापुराण (978 ई.) जिसमें 24 तीर्थंकरों सहित 63 शलाकापुरुषों का चरित्र उन्होंने कन्नड में लिखा है । कन्नड भाषा के साहित्य के इतिहास में भी उनका उच्च स्थान है । साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित तथा रं. श्री मुगलि द्वारा लिखित 'कन्नड साहित्य का इतिहास' ( हिन्दी संस्करण) में लिखा है- "दसवीं शताब्दी के अन्य कवियों में चावण्डराय गद्यकार के रूप में प्रसिद्ध थे । पम्प की तरह वे कवि भी थे और रणबांकुरे भी। उनके 'चावुण्डरायपुराण' का महत्त्व मुख्यतः गद्य शैली के लिए है । पाँच-छह शताब्दियों से कन्नड़ में विकसित होते हुए कथागद्य और शास्त्र- गद्य के सम्मिश्रण में 'चामुण्डराय पुराण' विशिष्ट है ।" वास्तु - शिल्प के क्षेत्र में भी चामुण्डराय का योगदान अद्वितीय है । उन्होंने संसार प्रसिद्ध गोमटेश्वर मूर्ति बनवाई जो एक हजार वर्ष बीत जाने पर भी उनकी कीर्ति का स्मरण कराती रहती है। इस मूर्ति के अतिरिक्त, चामुण्डराय ने अनेक जिनमन्दिरों, मूर्तियों आदि का निर्माण, जीर्णोद्धार और प्रतिष्ठा करायी थी । श्रवणबेलगोल की चन्द्रगिरि पर स्व-निर्मापित चामुण्डराय बसदि में इन्द्रनीलमणि की मनोज्ञ नेमिनाथ (गोम्मटजिन) को प्रतिमा प्रतिष्ठित करायी थी । यह मन्दिर उक्त स्थान के जिनालयों में सर्वाधिक सुन्दर समझा जाता है । विन्ध्यगिरि पर उन्होंने त्यागद ब्रह्मदेव नाम का सुन्दर मानस्तम्भ भी बनवाया था । " (डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन)
SR No.090100
Book TitleBharat ke Digambar Jain Tirth Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Jain
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year1988
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & History
File Size23 MB
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